pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

आपणो थार राजस्थानी कविता

15
5

थार थारी बाताँ प्यारी म्हानैं लागै जग स्यूं न्यारी। आक खींप अनै फोगड़ा जाँटी कुंभट अनै रोहिड़ा मरूधर री आ फुलवारी म्हानै लागै जग स्यूं न्यारी। गोडावण है इण री शान ऊँट बधावै इण रो मान कुरजाँ री मीठी ...