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आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते

4.2
1987

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल तुम तो ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : अकबर हुस्सैन रिज़वी उपनाम : अकबर अलाहाबादी जन्म : 16 नवंबर 1846 देहावसान: 15 फरवरी 1921 भाषा : उर्दू विधाएँ : ग़ज़ल, शायरी अकबर अलाहाबादी उर्दू व्यंग्य के अग्रणी रचनाकारों में से एक हैं, इनके काफी शेरों एवम ग़ज़लों में सामाजिक दर्द को सरल भाषा में हास्यपूर्क ढंग से उकेरा गया है। "हंगामा है क्यूं बरपा" इनकी मशहूर ग़ज़लों में से एक है

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Mohd Arif
    04 जुलाई 2020
    किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझलाके शबे वस्ल तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
  • author
    mohd munnu
    03 दिसम्बर 2018
    bahut badhia
  • author
    Amar Paswan
    11 अप्रैल 2020
    वाह क्या बात कही है
  • author
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  • author
    Mohd Arif
    04 जुलाई 2020
    किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझलाके शबे वस्ल तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
  • author
    mohd munnu
    03 दिसम्बर 2018
    bahut badhia
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    Amar Paswan
    11 अप्रैल 2020
    वाह क्या बात कही है