pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

आखिरी बेंच तक..

5
10

दोपहर का वक्त था। चिलचिलाती धूप में मैं उस भीड़ भरे स्टेशन पर एक छोड़ दूसरे, दूसरे से तीसरे शेड के नीचे की बेंच तलाश कर रही थी। पर कहीं जगह की कोई गुंजाइश नहीं थी। सभी प्लेसेस ओवरक्राउडेड और फुल ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Santosh K. Goriya

हम, अपने हृदय की गूँज को कविताओं और कहानियों के रूप में यहाँ पर संकलित कर रहे हैं केवल इसलिए कि अगले जन्म में आकर पुनः पढ सकें और देख सकें कि हमारी मनोवांछना ने कौन सा आकार धारण किया है! मैं चाहूँ, हर रूप में ढल जाऊँ खुद को सभी के भावों में पाऊँ। दुःख-दर्द उनके अपनाऊँ खोजूँ नए रास्ते, दुःख मिटाऊँ। हँसूँ-मुस्काऊँ सबके संग सबको जीवन का वैभव दिखलाऊँ।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kavita Jha "Avika"
    14 जून 2025
    बहुत सुंदर कहानी 👌 माता रानी कब किस रूप में हमारी मदद करतीं हैं कहना कठिन है। कहानी की शुरुआत से लगा प्रेम कहानी होगी पर आखिरी बैंच पर माता रानी के दर्शन 🙏 धन्य आपकी लेखनी को। बहुत समय बाद आज आपकी रचनाएं पढ़ी अच्छा लगा
  • author
    Payal Shriwash
    13 जून 2025
    👌👌👌👌
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kavita Jha "Avika"
    14 जून 2025
    बहुत सुंदर कहानी 👌 माता रानी कब किस रूप में हमारी मदद करतीं हैं कहना कठिन है। कहानी की शुरुआत से लगा प्रेम कहानी होगी पर आखिरी बैंच पर माता रानी के दर्शन 🙏 धन्य आपकी लेखनी को। बहुत समय बाद आज आपकी रचनाएं पढ़ी अच्छा लगा
  • author
    Payal Shriwash
    13 जून 2025
    👌👌👌👌