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आजादी

4.4
408

भीड़ में काफी हैं केवल दो आँखें मुझे यह एहसास कराने कि मैं लड़की हूँ अब लड़कियां निकली हैं अपने लिए नई परिभाषा गढ़ने छूने अपना आकाश अपनी जमीन पर खड़ी हो गई हैं लड़कियां हर चिड़िया लड़ाकू नहीं होती और सारी ...

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लेखक के बारे में
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रिया मिश्रा
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    12 अक्टूबर 2015
    बहुत सुन्दर । सही है कि आजाद होने की चाहत प्रबल है ।
  • author
    Puneet Agarwal
    21 अक्टूबर 2015
    अति सुन्दर ।   एहसास और संवेदनशीलता को आकांक्षा के साथ बखूबी पिरोया गया है । शुभकामनाएँ
  • author
    Sanjay Negi
    02 जून 2021
    बहुत ही सुंदर रचना। बहुत ही सुंदर चित्रण
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    12 अक्टूबर 2015
    बहुत सुन्दर । सही है कि आजाद होने की चाहत प्रबल है ।
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    Puneet Agarwal
    21 अक्टूबर 2015
    अति सुन्दर ।   एहसास और संवेदनशीलता को आकांक्षा के साथ बखूबी पिरोया गया है । शुभकामनाएँ
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    Sanjay Negi
    02 जून 2021
    बहुत ही सुंदर रचना। बहुत ही सुंदर चित्रण