दोस्तों,बहुत पहले जगजीत सिंग की एक ग़ज़ल आई थी"आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे" बस इसी पंक्ति को ध्यान में रख आज की अपनी ये कविता लिखी है मैंने। "आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे" आईना मुझसे ...
अपने दिल की बातों को शब्दों में ढ़ाल देती हूँ,
बस अपना मन कागज़ पर उतार देती हूँ।
कि ख्वाबों को सजा कर एक नई दुनियाँ बनाती हूँ,
शब्दों के पंखों पर बिठा तुम्हें वो दुनियाँ दिखाती हूँ।
सारांश
अपने दिल की बातों को शब्दों में ढ़ाल देती हूँ,
बस अपना मन कागज़ पर उतार देती हूँ।
कि ख्वाबों को सजा कर एक नई दुनियाँ बनाती हूँ,
शब्दों के पंखों पर बिठा तुम्हें वो दुनियाँ दिखाती हूँ।
अब तो पहन लिया अनुभव का चोला
ओढ़ ली समझदारी की चादर👌👌👌
आई नो से कह दे कोई चाहिए अगर उसे पहली सी सूरत,,,
लौटा दे पहले वह वक्त सुनहरा👌👌
कमाल लिखा आपने रचना की संपूर्ण पंक्तियां एक से एक बढ़कर गहरे भाव लिए हुए बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति आईने और अपने मन के अंतर्द्वंद को आपने बखूबी शब्दों का रूप देते हुए शानदार रचना का निर्माण किया है आज की विषय को सार्थक करती है आपकी रचना
जगजीत सिंह की ग़ज़ल का जो रूप आपने हवाला यहां बयां किया है अपने शब्दों के माध्यम से बहुत ही काबिले तारीफ,,,,,💐🙏👏
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
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अनुपम!
कलम जब चलती है उम्दा सृजन ही करती है। हर बार की तरह ये लाज़वाब है। प्रस्तुत रचना में भी शब्दों में गहराई समायी है।
"काश! कि आइने तुने मेरा अक्स संभाला होता।
बदलते वक्त के साथ, मुझे तेरा साथ मिला होता।
सुनो! मैं वापस लेने आई हूँ, तेरे पास से,
जो गुज़ारा था हसीं लम्हा! कभी प्यार से।
मांँ की गोद से उतर कर,
सखियों के साथ को छोड़कर।
जो बिताये थे तेरे साथ कभी,
अपनी अल्हड़ जवानी के हसीं लम्हें।
हांँ मैं लेने आई हूंँ, तेरे पास.....
सहेज लो मुझे, समेट लो मुझे,
हांँ एक बार फिर से....
दिखा दो मुझे मेरी वही तस्वीर,
जब पहली बार अपना अक्स देख शर्मायी थी।
कितनी बातें बस तुझसे की है,
जो सबसे बोल नहीं पाती थी।
नटखट बचपन, नादान जवानी,
हर पल तुम संग बांटी थी।
सुनो! अब सब वापस लेने आई,
छोड़कर फिर से दुनियादारी
तेरे संग जी लूँ ,
वो सारे हसीं सपने-अपने।।"
🙂🙂🙏🙏
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"काश! कि आइने तुने मेरा अक्स संभाला होता।
बदलते वक्त के साथ, मुझे तेरा साथ मिला होता।
सुनो! मैं वापस लेने आई हूँ, तेरे पास से,
जो गुज़ारा था हसीं लम्हा! कभी प्यार से।
मांँ की गोद से उतर कर,
सखियों के साथ को छोड़कर।
जो बिताये थे तेरे साथ कभी,
अपनी अल्हड़ जवानी के हसीं लम्हें।
हांँ मैं लेने आई हूंँ, तेरे पास.....
सहेज लो मुझे, समेट लो मुझे,
हांँ एक बार फिर से....
दिखा दो मुझे मेरी वही तस्वीर,
जब पहली बार अपना अक्स देख शर्मायी थी।
कितनी बातें बस तुझसे की है,
जो सबसे बोल नहीं पाती थी।
नटखट बचपन, नादान जवानी,
हर पल तुम संग बांटी थी।
सुनो! अब सब वापस लेने आई,
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तेरे संग जी लूँ ,
वो सारे हसीं सपने-अपने।।"
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