pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

आदमी

4.7
366

आदमी ही आदमी से दूर हो गया पाई जो दौलत मगरूर हो गया बोझ से गमों के ये चूर हो गया स्वार्थ से कितना भरपूर हो गया आदमी ही आदमी से दूर हो गया पैसा ही इसका दस्तूर हो गया जाने कैसा इसको फितूर हो गया खो ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    18 ଅକ୍ଟୋବର 2019
    बधाई।क्या समानता है।मैंने भी एक कविता आदमी प्रकाशित की है।आपके और मेरे भाव भी समान है।कभी मौका मिलै तो मेरी अन्य. रचनाओं के साथ आदमी. भीपढने का कष्ट करें धन्यवाद।
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    15 ଅକ୍ଟୋବର 2018
    मनुष्य, मनुष्य से दूर तो हुआ है / सही चित्र खींचा है, आपने / रचना अच्छी है...
  • author
    Jiwan Sameer
    27 ଜୁଲାଇ 2020
    सुंदर पंक्तियां
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    18 ଅକ୍ଟୋବର 2019
    बधाई।क्या समानता है।मैंने भी एक कविता आदमी प्रकाशित की है।आपके और मेरे भाव भी समान है।कभी मौका मिलै तो मेरी अन्य. रचनाओं के साथ आदमी. भीपढने का कष्ट करें धन्यवाद।
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    15 ଅକ୍ଟୋବର 2018
    मनुष्य, मनुष्य से दूर तो हुआ है / सही चित्र खींचा है, आपने / रचना अच्छी है...
  • author
    Jiwan Sameer
    27 ଜୁଲାଇ 2020
    सुंदर पंक्तियां