वो चली गयी , अब दरवाजो के पीछे से कोई कूँ कूँ की आवाज़ नहीं आती , दीवारों पर कोई अपने पंजे नहीं खुरचता दिन तो मेरा अब भी कट जाता है , पर दोपहरी नहीं कटती , जब सब खा के सो जाते हैं , तो मैं उसी ...
वो चली गयी , अब दरवाजो के पीछे से कोई कूँ कूँ की आवाज़ नहीं आती , दीवारों पर कोई अपने पंजे नहीं खुरचता दिन तो मेरा अब भी कट जाता है , पर दोपहरी नहीं कटती , जब सब खा के सो जाते हैं , तो मैं उसी ...