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रार से बाड़ भली

4.6
65304

"अरे सुनो..ज़रा 4 कप चाय बना लेना कुछ लोग आए है..." अंदर से कुसुम जी का कोई जवाब नही मिला..राघवेंद्र जी दोबारा बोले"अरे कहाँ मर गए सब...बहू सुनो ज़रा.." शिवानी बाहर भुनभुनाते हुए निकली लेकिन ससुर ...

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लेखक के बारे में
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Rekha Sishodia Tomar

बस एक साधारण स्त्री एक असाधरण मन के साथ

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Vandna Solanki "वंदू"
    16 जुन 2019
    बहुत बढ़िया कहानी है।आखिर आत्मसम्मान नाम की भी कोई चीज़ होती है।कुसुम ने सही निर्णय लिया
  • author
    Poonam Kaparwan pikku
    16 जुन 2019
    यही सच्चाई है ईश संसारी की बुढापे मे बहुओ के आधीन होना पढता है और बुजुर्ग नायिका ने घर छोडकर अच्छा किया hearttouchable ability hone chahiye ensan kahi v kha sakta h .
  • author
    17 जुन 2019
    बेहतर तरीके से जिंदादिल काम किया है कुसुम ने 👌👌👌👌
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    Vandna Solanki "वंदू"
    16 जुन 2019
    बहुत बढ़िया कहानी है।आखिर आत्मसम्मान नाम की भी कोई चीज़ होती है।कुसुम ने सही निर्णय लिया
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    Poonam Kaparwan pikku
    16 जुन 2019
    यही सच्चाई है ईश संसारी की बुढापे मे बहुओ के आधीन होना पढता है और बुजुर्ग नायिका ने घर छोडकर अच्छा किया hearttouchable ability hone chahiye ensan kahi v kha sakta h .
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    17 जुन 2019
    बेहतर तरीके से जिंदादिल काम किया है कुसुम ने 👌👌👌👌