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ज़िन्दगी

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4.1

वक़्त ने साथ दिए तो पैमाने भी तय करेंगे, फिर ज़िन्दगी हमें नहीं, हम ज़िन्दगी को जियेंगे। ज़िन्दगी से नजदीकियां तो हमेशा से रही, कोई चला जाय बिन बताएं तो कुसूर हमारा नही। जीने का मज़ा तो मुसाफिर ही लेते है ...