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हाथी की फाँसी

4.5
5450

कुछ दिन से नवाब साहब के मुसाहिबों को कुछ हाथ मारने का नया अवसर नही मिला था। नवाब साहब थे पुराने ढंग के रईस। राज्‍य तो बाप-दादे खो चुके थे, अच्‍छा वसीका मिलता था। उनकी ‘इशरत मंजिल’ कोठी अब भी किसी ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अक्टूबर, 1890, अतरसुइया, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : पत्रकारिता, निबंध, कहान मुख्य कृतियाँ गणेशशंकर विद्यार्थी संचयन (संपादक - सुरेश सलिल) संपादन : कर्मयोगी, सरस्वती, अभ्युदय, प्रताप निधन 25 मार्च, 1931 कानपुर

समीक्षा
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  • author
    Nitin Mittal
    07 जून 2020
    विद्यार्थी जी कानपुर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी थे, जिन्होंने अपने प्रताप प्रेस के माध्यम से आजादी की अलख जगाई
  • author
    हरि ओम शर्मा
    20 अप्रैल 2020
    बहुत मजेदार किस्सा, यह किस्सागोई अब कहाँ ? हाथी को फाँसी, क्या नुक्ता निकाला है गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने । उनकी सोच को सो सलाम !
  • author
    09 मई 2020
    अब नवाब साहब हैं तो रुतबे की हिसाब से हाथी से कम को भला क्या फांसी होगी ? बहुत मजेदार
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    Nitin Mittal
    07 जून 2020
    विद्यार्थी जी कानपुर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी थे, जिन्होंने अपने प्रताप प्रेस के माध्यम से आजादी की अलख जगाई
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    हरि ओम शर्मा
    20 अप्रैल 2020
    बहुत मजेदार किस्सा, यह किस्सागोई अब कहाँ ? हाथी को फाँसी, क्या नुक्ता निकाला है गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने । उनकी सोच को सो सलाम !
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    09 मई 2020
    अब नवाब साहब हैं तो रुतबे की हिसाब से हाथी से कम को भला क्या फांसी होगी ? बहुत मजेदार