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हरिया_बा_‬

4.5
6090

" का हो बाबा ! कहिया भोज खिला रहे हैं | " " कौना बात के भोज बबुआ ?" " आपन सराध के |" " अपन बाबू के सराध करो जा के | कुकुर कहीं के | ससुर के नाती | " बाबा की गालियां जितना स्पीड पकड़तीं ठहाकों की ...

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लेखक के बारे में
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धीरज झा

नाम धीरज झा, काम - स्वछंद लेखन (खास कर कहानियां लिखना), खुद की वो बुरी आदत जो सबसे अच्छी लगती है मुझे वो है चोरी करना, लोगों के अहसास को चुरा कर कहानी का रूप दे देना अच्छा लगता है मुझे....किसी का दुःख, किसी की ख़ुशी, अगर मेरी वजह से लोगों तक पहुँच जाये तो बुरा ही क्या है इसमें :) .....इसी आदत ने मुझसे एक कहानी संग्रह लिखवा दिया जिसका नाम है सीट नं 48.... जी ये वही सीट नं 48 कहानी है जिसने मुझे प्रतिलिपि पर पहचान दी... इसके तीन भाग प्रतिलिपि पर हैं और चौथा और अंतिम भाग मेरे द्वारा इसी शीर्षक के साथ लिखी गयी किताब में....आप सब की वजह से हूँ इसीलिए कोशिश करूँगा कि आप सबका साथ हमेशा बना रहे... फेसबुक पर जुड़ें :- https://www.facebook.com/profile.php?id=100030711603945

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    shashi Capoor
    13 अक्टूबर 2020
    कहानी ने फणीश्वरनाथ की लोकभाषा और प्रेमचंद की भाषा शैली स्मरण करना दी, उत्तम रचना ।
  • author
    सिंह साहब
    13 मार्च 2019
    बहुत दिन के बाद ई तरह का कहानी पढ़े और का कहें शब्द कम पर जायेंगे आपकी इस कहानी की तारीफ़ में
  • author
    पवनेश मिश्रा
    30 दिसम्बर 2019
    लोक भाषा में संजोई बेहद संवेदना पूर्ण रचना 🙏🌹🙏,
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    shashi Capoor
    13 अक्टूबर 2020
    कहानी ने फणीश्वरनाथ की लोकभाषा और प्रेमचंद की भाषा शैली स्मरण करना दी, उत्तम रचना ।
  • author
    सिंह साहब
    13 मार्च 2019
    बहुत दिन के बाद ई तरह का कहानी पढ़े और का कहें शब्द कम पर जायेंगे आपकी इस कहानी की तारीफ़ में
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    पवनेश मिश्रा
    30 दिसम्बर 2019
    लोक भाषा में संजोई बेहद संवेदना पूर्ण रचना 🙏🌹🙏,