स्कूल से पढ़ा कर मैं अभी-अभी घर लौटी थी। थके हाथों से ताला खुलते ही एक पत्र खिसक कर जमीन पर आ गिरा। पत्र हाथ में लेते ही पता चल गया कि यह मम्मी का पत्र है। एक लंबी सांस लेकर मैंने पूरा पत्र एक ...
इतनी सुंदर कहानी लिखने के आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
एक मध्यम वर्गीय परिवार की परिस्थिति को आपने बखूबी उभारा, साथ ही नायिका के मनोभाव, उसकी आशाओं, उसकी कुंठाओँ को भी बहुत खूबसूरती से लिखा है।
शायद ऐसे बहुत से परिवार, बहुत सी अंजना हैं जो जिम्मेदारी की चक्की में न चाहते हुए भी पिसती चली जाती है।
वैसे तो कहानी को आपने एक सुखद अंत दिया पर बहुत सी लड़कियां इसी जिम्मेदारी के नीचे दबे दबे दम तोड़ देती हैं।
एक बार फिर आपको शुभेच्छा, सच कहूं तो इतनी लंबी कहानी पढ़ने से कतराता हूं पर आपकी कहानी से अनायास ही प्रेम हो गया।
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सुपरफैन
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आपकी रचना एकदम दिल छू लेनेवाली है...इसमे नायिका का अपने पिता को सहर देने का निर्णय सराहनिए है किन्तु पिता और माता के द्वारा सिर्फ अपने सपने पुरे करना और भाई को चिंतामुक्त रहना बहुत ही दुखद रहा... लेकिन अन्त में नायिका को मनमाफिक साथी मिल जाने से सारी कडवाहट निकल गयी... बहुत बहुत धन्यबाद ऐसी रचना के लिये...😊😊😊
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आपकी रचना बहुत सुंदर लगी। कहानी को आपने बड़े ही भावपूर्ण अच्छी तरह चित्रण किया है। एक कमाऊ पुत्र और कमाऊ बेटी, जिन्होंने परिवार के लिए स्वयं को भी खो दिया है वे ही ऐसी ऐसे भावनात्मक बातों को समझ सकते हैं। कहानी में बहुत अधिक कर्तव्यपरायणता और अभिभावकों में स्वार्थी पन आपने दर्शाया जो हमारे समाज की सच्चाई है।
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शायद ऐसे बहुत से परिवार, बहुत सी अंजना हैं जो जिम्मेदारी की चक्की में न चाहते हुए भी पिसती चली जाती है।
वैसे तो कहानी को आपने एक सुखद अंत दिया पर बहुत सी लड़कियां इसी जिम्मेदारी के नीचे दबे दबे दम तोड़ देती हैं।
एक बार फिर आपको शुभेच्छा, सच कहूं तो इतनी लंबी कहानी पढ़ने से कतराता हूं पर आपकी कहानी से अनायास ही प्रेम हो गया।
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