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सपनों की कोई उम्र नही होती मिसेस देशपांडे

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कभी आपने सुना है कि बेटी का सपना पूरा करने में मां बाप ने अपना घर और शहर छोड़ दिया हो और बेटी के साथ उसके सपनों के शहर शिफट हो गए हों? मेरे मम्मी-पापा ने यही किया। मेरा एफटीटीआई में एडमिशन हुआ तो ...

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लेखक के बारे में
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sulekha bajpai
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Amol Jade
    05 जुलाई 2021
    खूप छान लिखाण आहे तुमचं सुलेखा जी
  • author
    Archana Saxena
    30 जून 2021
    मानव जीवन एक बार मिलता है चाहे वो इस्त्री हो या पुरुष।येआप पर निर्भर करता है कि आप उसका क्या मूल्य लगते हैं। लेखिका ने जीवन जीने का स्त्रियों को जो एक नजरिया दिया है निश्चय ही अब वे दिल में संतोष रख कर मृत्यु का स्वागत कर सकेंगी।
  • author
    rita shukla
    15 जून 2021
    बहुत ही बढ़िया प्रगतिवादी रचना,एक ऐसी अनछुए कथानक को लेखिका ने उकेरा है कि इस व्यथा को भुक्तभोगी ही समझ सकता है, विशेष कर स्त्रियों के लिए हर उम्र के पड़ाव पर वर्जनाऐ है। इस मुद्दे पर‌ कलम उठाने के लिए लेखिका बधाई की पात्र है।
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    Amol Jade
    05 जुलाई 2021
    खूप छान लिखाण आहे तुमचं सुलेखा जी
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    Archana Saxena
    30 जून 2021
    मानव जीवन एक बार मिलता है चाहे वो इस्त्री हो या पुरुष।येआप पर निर्भर करता है कि आप उसका क्या मूल्य लगते हैं। लेखिका ने जीवन जीने का स्त्रियों को जो एक नजरिया दिया है निश्चय ही अब वे दिल में संतोष रख कर मृत्यु का स्वागत कर सकेंगी।
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    rita shukla
    15 जून 2021
    बहुत ही बढ़िया प्रगतिवादी रचना,एक ऐसी अनछुए कथानक को लेखिका ने उकेरा है कि इस व्यथा को भुक्तभोगी ही समझ सकता है, विशेष कर स्त्रियों के लिए हर उम्र के पड़ाव पर वर्जनाऐ है। इस मुद्दे पर‌ कलम उठाने के लिए लेखिका बधाई की पात्र है।