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सजा

4.5
53585

रात का सन्नाटा! हाथ में ब्लेड! कमरे में अँधेरा! राधा बुत बनी कई मिनट तक खड़ी रही। कमरा जाना पहचाना होकर भी अजनबी लगने लगा। सारा गाँव सोया पड़ा था। ‘घर से भागने वाली लड़कियों को ट्रक वाले उठा के ले ...

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लेखक के बारे में

सहर करीब 15 साल से पढ़ने और लिखने के शौक को काम की तरह करते हैं। तीन साल से अपना ब्लॉग लिख रहे हैं। खुद को अति-प्रैक्टिकल मानते हैं इसलिए इनकी कहानियों में भी प्रैक्टिकल ज्ञान साफ़ झलकता है। फ़िलहाल, प्राइवेट कंपनी में एडमिनिस्ट्रेटर हैं और अपने घर में राइटर। कहानियां लिखते हैं, गज़लें लिखते थे, अब इन दिनों उपन्यास लिख रहे हैं। आगे क्या लिखेंगे इसका क़तई कोई ज्ञान नहीं पर लिखते रहेंगे,इसका भरोसा है। अधिक जानकारी के लिए फेसबुक पर जुड़े अथवा ट्विटर पर फॉलो करें। /Siddhartarorasahar - Facebook @SiddheartA - Twitter

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    नीता राठौर
    25 जुलै 2019
    एक भोली नादान बच्ची किस तरह से बड़ी कर दी गई और ये करनेवाले गैर नहीं अपने ही थे। ये अपने इतने लोलुप क्यों होते हैं, इनकी सज़ा यही होनी चाहिए। बढ़िया रचना।
  • author
    ravinder agarwal
    29 जुन 2018
    झझकोर कर रख दिया, 'विश्वास' अब ये शब्द ही अनजाना से लगता है।
  • author
    Mohit Saini
    29 जुन 2018
    अपनों की वैहशियत को दर्पण दिखाने वाली कृति 🙏
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    नीता राठौर
    25 जुलै 2019
    एक भोली नादान बच्ची किस तरह से बड़ी कर दी गई और ये करनेवाले गैर नहीं अपने ही थे। ये अपने इतने लोलुप क्यों होते हैं, इनकी सज़ा यही होनी चाहिए। बढ़िया रचना।
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    ravinder agarwal
    29 जुन 2018
    झझकोर कर रख दिया, 'विश्वास' अब ये शब्द ही अनजाना से लगता है।
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    Mohit Saini
    29 जुन 2018
    अपनों की वैहशियत को दर्पण दिखाने वाली कृति 🙏