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वो पन्द्रह दिन

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किसी भी आदमी की अहमियत हमे तब पता चलती है जब वो हमसे बिछुडने वाला होता है यह ऐसा पल होता है जिसका अहसास केवल उन दो व्यक्तियों को होता है संयोगात्मक रूप से जुड़े हों। हम कितने भी मजबूत क्यों ना हों पर ...

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लेखक के बारे में
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अलका आदिले

नाम- अलका आदिले , शिक्षा - बी. एस. सी , एम .बी.ए, और बी.एड , जन्म स्थान- छत्तीसगढ , निवास- दिल्ली । "जब मै जीवन के अंतिम क्षणों में परमात्मा के सामने खडी रहूँगी, तब मै चाहती हूँ की मेरे पास टैलेंट की एक बूंद भी ना हो, ताकि मै परमात्मा से कह सकू की, तुमने जो दिया उन सब का मैंने उपयोग कर लिया”

समीक्षा
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  • author
    Kiran Patle
    19 जून 2018
    बेहतरीन लेखन शैली , प्रयोगवादी लेखन की झलक, आपकी रचना पढकर मैने भी अपने वास्तविक जीवन मे घटित घटनाओ के करीब पाया।पाठक जब रचना की गहरायी में जाकर अपने जीवन से जोड़ कर देखने लगे लेखन की जीत हो गयी समझनी चाहिये।
  • author
    BRIJ BHOOSHAN KHARE
    17 जून 2018
    अलका जी, बहुत अच्छी रचना. इंतजार के फल बहुत लंबे होते हैं. कभी जब चार छह दिन के लिए घर से निकलता हूँ, कुछ ऐसा ही सुनने के लिए मिला करता है.
  • author
    GYAN PRAKASH
    16 जून 2018
    very nice
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    Kiran Patle
    19 जून 2018
    बेहतरीन लेखन शैली , प्रयोगवादी लेखन की झलक, आपकी रचना पढकर मैने भी अपने वास्तविक जीवन मे घटित घटनाओ के करीब पाया।पाठक जब रचना की गहरायी में जाकर अपने जीवन से जोड़ कर देखने लगे लेखन की जीत हो गयी समझनी चाहिये।
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    BRIJ BHOOSHAN KHARE
    17 जून 2018
    अलका जी, बहुत अच्छी रचना. इंतजार के फल बहुत लंबे होते हैं. कभी जब चार छह दिन के लिए घर से निकलता हूँ, कुछ ऐसा ही सुनने के लिए मिला करता है.
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    GYAN PRAKASH
    16 जून 2018
    very nice