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विराम चिह्न की आत्मकथा!

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“विराम चिह्न की आत्मकहानी, सुने उसी की जुबानी” - जी हाँ, संक्षिप्त, रोचकतापूर्ण, खेल-खेल में आत्मकथात्मक कहानी सुन रहे हैं - विरामचिह्न।

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लेखक के बारे में

प्रभाकर पाण्डेय जन्मतिथि :०१-०१-१९७६ जन्म-स्थान :गोपालपुर, पथरदेवा, देवरिया (उत्तरप्रदेश) शिक्षा :एम.ए (हिन्दी), एम. ए. (भाषाविज्ञान)  पिछले 18-19 सालों से हिन्दी की सेवा में तत्पर। पूर्व शोध सहायक (Research Associate), भाषाविद् के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मुम्बई के संगणक एवं अभियांत्रिकी विभाग में भाषा और कंप्यूटर के क्षेत्र में कार्य। कई शोध-प्रपत्र राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रस्तुत। वर्तमान में सी-डैक मुख्यालय, पुणे में कार्यरत। विभिन्न हिंदी, भोजपुरी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Mukesh Ram Nagar
    22 ستمبر 2018
    जय हो विराम भईया🙏 आज बचपन की हिंदी व्याकरण पुस्तिका याद आ गई सर।😊 हिंदी में लिखने वाले हम जैसे लोगों के लिए वरदान स्वरूप है आपकी रचना।🙏
  • author
    ANUPMA TIWARI
    27 اپریل 2019
    अद्भुत। कोई इस तरह भी सोच सकता हैं, सोचा नही था। आपकी लेखनी को सादर प्रणाम।
  • author
    Vibha Rashmi
    09 مارچ 2019
    देवनागरी हिन्दी भाषा में विराम चिह्नों का सुन्दर परिचय बहुत उपयोगी है ।बधाई ।
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    Mukesh Ram Nagar
    22 ستمبر 2018
    जय हो विराम भईया🙏 आज बचपन की हिंदी व्याकरण पुस्तिका याद आ गई सर।😊 हिंदी में लिखने वाले हम जैसे लोगों के लिए वरदान स्वरूप है आपकी रचना।🙏
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    ANUPMA TIWARI
    27 اپریل 2019
    अद्भुत। कोई इस तरह भी सोच सकता हैं, सोचा नही था। आपकी लेखनी को सादर प्रणाम।
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    Vibha Rashmi
    09 مارچ 2019
    देवनागरी हिन्दी भाषा में विराम चिह्नों का सुन्दर परिचय बहुत उपयोगी है ।बधाई ।