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लापता पीली तितली

4.6
8416

वह चार साल की थी, और वह वहाँ क्यों थी? अपने घर से बहुत दूर, कई गलियाँ और दो मोहल्ले, सात विशाल द्वार और चढ़ाइयाँ पार कर ? किसी घर की अजनबी छत पर अपनी फ्रॉक के नीचे बिना कुछ पहने? महज एक तोते की चाह ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर शिक्षा – बी.एससी., एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. फिल., विशारद ( कथक) प्रकाशित कृतियाँ – कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई, केयर ऑफ स्वात घाटी, गंधर्वगाथा, अनामा उपन्यास-  शिगाफ़ ,  शालभंजिका,  पंचकन्या अनुवाद – माया एँजलू की आत्मकथा ‘ वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद पुरस्कार, सम्मान और फैलोशिप : कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007 रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी) कृष्ण प्रताप कथा सम्मान 2011 गीतांजलि इण्डो – फ्रेंच लिटरेरी प्राईज़ 2012 ज्यूरीअवार्ड रज़ा फाउंडेशन फैलोशिप – 2013 अन्य साऊथ एशियन लैग्वेज इंस्टीट्यूट, हायडलबर्ग (जर्मनी) में उपन्यास ‘शिगाफ़’ का अंश पाठ व रचना प्रक्रिया पर आलेख प्रस्तुति. (2011) नौवें विश्व सम्मेलन (2012) जोहांसबर्ग में शिरकत. और सूचना प्रोद्योगिकी और देवनागरी का सामर्थ्य विषय पर पर्चा संप्रति – स्वतंत्र लेखन और इंटरनेट की पहली हिन्दी वेबपत्रिका ‘हिन्दीनेस्ट’ का पंद्रह वर्षों से संपादन.

समीक्षा
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    विद्या शर्मा
    02 मई 2019
    एक एक शब्द से अंत तक निगाह नहीं हट पाय विषय को गंभीरता ही पर आपने जिस संजीदगी से उसे बयां किया उसकी छाप दिल पर अमिट हो गई आपको बहुत बहुत धन्यवाद इतने गंभीर विषय को इतने ही सुंदरता से सधे हुए शब्दों के द्वारा हमारे समक्ष लाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपको
  • author
    Veena Anand
    11 मई 2020
    बचपन में न जाने कितनी बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाएं होती है लेकिन अपनी अबोधता के कारण वो समझ नहीं पाती क्या हो रहा है । गंभीर विषय को जिस तरह आपने अपने शब्दो के मोती में पिरोकर कथानक लिखा उसके लिए आपको हार्दिक बधाई। एक बात खटकती है क्यों मां ने चार साल की बच्ची को रात भर के लिए भेज दिया और डी के का नहीं भरा पूरा परिवार था फिर क्यों डी के की बहन या मां ने रात को बच्ची को अपने पास नहीं सुलाया
  • author
    Prateek Jain
    04 सितम्बर 2020
    हमारे इर्द-गिर्द ऐसी ही कुत्सित मानसिकता और दोहरे चरित्र वाले अनगिनत डी के हैं। मनीषा जी,सच्चाई से अवगत कराती है आपकी रचना।
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    विद्या शर्मा
    02 मई 2019
    एक एक शब्द से अंत तक निगाह नहीं हट पाय विषय को गंभीरता ही पर आपने जिस संजीदगी से उसे बयां किया उसकी छाप दिल पर अमिट हो गई आपको बहुत बहुत धन्यवाद इतने गंभीर विषय को इतने ही सुंदरता से सधे हुए शब्दों के द्वारा हमारे समक्ष लाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपको
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    Veena Anand
    11 मई 2020
    बचपन में न जाने कितनी बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाएं होती है लेकिन अपनी अबोधता के कारण वो समझ नहीं पाती क्या हो रहा है । गंभीर विषय को जिस तरह आपने अपने शब्दो के मोती में पिरोकर कथानक लिखा उसके लिए आपको हार्दिक बधाई। एक बात खटकती है क्यों मां ने चार साल की बच्ची को रात भर के लिए भेज दिया और डी के का नहीं भरा पूरा परिवार था फिर क्यों डी के की बहन या मां ने रात को बच्ची को अपने पास नहीं सुलाया
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    Prateek Jain
    04 सितम्बर 2020
    हमारे इर्द-गिर्द ऐसी ही कुत्सित मानसिकता और दोहरे चरित्र वाले अनगिनत डी के हैं। मनीषा जी,सच्चाई से अवगत कराती है आपकी रचना।