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याद आते हैं वे दिन

4.6
3643

जीवन का प्रारंभ अर्थात बाल्यावस्था ..यह वह समय होता है जब दुनिया के छल- प्रपंच, दांव- पेंच से दूर मासूम ,निश्छल, भोला-भाला बचपन मुस्कुराता है और वैसी ही उसके स्कूल की घटनाएं होती हैं । प्राइमरी ...

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लेखक के बारे में
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Asha Shukla

"जल बिच मीन पियासी" अब पुस्तक के रूप में amezon पर उपलब्ध। 💐चाहें हम रहें न रहें,ये भाव हमारे रह जाएँगे। जब-जब पढ़ेंगे लोग हमें,हम याद उन्हें आ जाएँगे।💐 https://youtu.be/7Io3xh-AHBA youtube पर मेरी कविताएँ और कहानियाँ सुने मेरी आवाज में ।

समीक्षा
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  • author
    संध्या बक्शी
    07 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    मैम नमन 🙏 ,हम आपको पढ़ते तो हैं , किन्तु इतने उम्दा लेखन का कद देख कर ,समीक्षा करने में झिझकते हैं । आज आपका संस्मरण पढ़ कर लगा ,कि आप में लेश मात्र भी घमण्ड नहीं है । बिल्कुल down to earth ! बहुत कुछ हम जैसी ही है । बेहद खूबसूरत लिखा !, शैली वही सहज सरल ,अडम्बरहित ! इस रचना को पटल पर साझा करने हेतु ,आपका आभार । 🌸 शुभकामनाएं 🌸
  • author
    R.K shrivastava
    07 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है आपने ! मुझे अपने गुरुजी स्व.अमृत लाल तिवारी याद आ गये । वे एक साथ बड़े हँसमुख, और कड़क थे ।मुझ पर उनका बहुत स्नेह था । मैं वर्ष मे सात आठ महीने उन्हीं के घर में रात का भोजन करता था और उन्हीं के सोता भी था । सुबह चार बजे से जागकर पढ़ना, और छ:बजे स्नान कर चाय पीकर तब अपने घर जाना होता था ।
  • author
    Meena Bhatt.
    07 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने अपने गुरु का एक बार शिवानी जी अपने गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर जी का वर्णन घूगंराले बाल चोड़ा मस्तक शायद मैं ने अपने हाई स्कूल में पढ़ा था।उसकी याद दिला दी।हार्दिक आभार जो आप ने हमारा बचपन ओर हमारे गुरु याद दिला दिए।ढेर सारी शुभकामनाएं।
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    संध्या बक्शी
    07 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    मैम नमन 🙏 ,हम आपको पढ़ते तो हैं , किन्तु इतने उम्दा लेखन का कद देख कर ,समीक्षा करने में झिझकते हैं । आज आपका संस्मरण पढ़ कर लगा ,कि आप में लेश मात्र भी घमण्ड नहीं है । बिल्कुल down to earth ! बहुत कुछ हम जैसी ही है । बेहद खूबसूरत लिखा !, शैली वही सहज सरल ,अडम्बरहित ! इस रचना को पटल पर साझा करने हेतु ,आपका आभार । 🌸 शुभकामनाएं 🌸
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    R.K shrivastava
    07 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है आपने ! मुझे अपने गुरुजी स्व.अमृत लाल तिवारी याद आ गये । वे एक साथ बड़े हँसमुख, और कड़क थे ।मुझ पर उनका बहुत स्नेह था । मैं वर्ष मे सात आठ महीने उन्हीं के घर में रात का भोजन करता था और उन्हीं के सोता भी था । सुबह चार बजे से जागकर पढ़ना, और छ:बजे स्नान कर चाय पीकर तब अपने घर जाना होता था ।
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    Meena Bhatt.
    07 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने अपने गुरु का एक बार शिवानी जी अपने गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर जी का वर्णन घूगंराले बाल चोड़ा मस्तक शायद मैं ने अपने हाई स्कूल में पढ़ा था।उसकी याद दिला दी।हार्दिक आभार जो आप ने हमारा बचपन ओर हमारे गुरु याद दिला दिए।ढेर सारी शुभकामनाएं।