“मैं पलाश चतुर्वेदी आज इन पत्तों को साक्षी मानकर तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार करता हूं ।“ “ये क्या बकवास है ?“ -कहते हुए मेघा ने तेजी से अपना हाथ पलाश की हथेली से वापस खींचा । “अरे तुम्हें नही पता, ये ...
कहानी केवल वह नहीं है जो पाठक को कल्पना के सुंदर से आकाश की सैर करा दे बल्कि वह भी है जो व्यावहारिकता के धरातल पर ला पटके । इस कहानी में दोनों ही बाते हैं । बहुत खूब मिताली सिंह । ☺
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