मेरा जन्म तथा शिक्षा - दीक्षा कोलकाता में हुआ। बचपन से ही दुखी जन मानस की पीड़ा मन - अंतर को छू जाती थी। अतः आयु बढ़ने के साथ होम्योपैथी तथा अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर रूझान बढ़ा। होम्योपैथी तथा अन्य कई पद्धतियों को विधिवत सीखा। कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक लोगों को पीड़ा मुक्त कर सकूं।
पठन - पाठन में बचपन से ही रूचि रही है। किशोरावस्था तक आते-आते पहले दर्शन शास्त्र फिर मनोविज्ञान मेरे प्रिय विषय बन गए। विश्व भर के अनेक लेखकों को पढ़ती गई। पर वास्तविक ज्ञान श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ कर प्राप्त हुआ। मेरे विचार से सृष्टि का सकल ज्ञान - विज्ञान गीता से उद्भूत है।फलतः भगवान् श्रीकृष्ण के ही मार्ग दर्शन में उन्हीं की भक्ति में लीन हो गई और जीवन की पूर्णता का अनुभव किया।
लेखन की शुरुआत कब हुई , कह नहीं सकती। वे परमपिता परम रचयिता ही आकर लेखनी पर बैठ जाते हैं, वह स्वयं चल पड़ती है और शब्द मन से निकल - निकल कर ' रचना ' का रूप ले लेते हैं।
कर्म सिद्धांत का वास्तविक दर्शन मैंने ज्योतिष शास्त्र पढ़ कर किया। अभिरूचि इतनी बढ़ी कि शोध तक जा पहुंची। शोध-पत्र प्रकाशित भी हुआ।
लेखन में शौक के कारण आकाशवाणी से भी जुड़ी। यदा - कदा
कुछ रचनाएं प्रकाशित भी हुई। विवाह के पश्चात दिल्ली में ही बस गई।
हर दिन कुछ नया सीखने, नया करने की लालसा रहती है। अभी विद्यार्थी हूं।
_ ज्योतिषाचार्य डॉ माया गुप्ता
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