देख कर अक्सर मुझे वो धीरे से मुस्का जाती है, गले लग कर मुझसे, मुझमे ही वो मिल जाती है। कुछ कहती नही है लबो से आंखों आंखों में ही बतियाती है, रख कर सीने पर सिर मेरे , मेरे साथ ही खो जाती है। कभी ...
बस यूँही बेवक्त बेवजह कुछ भी लिखने की आदत सी है मुझे
अपने जज्बातों को कागज़ पर उतारने की आदत सी है मुझे।
शुद्ध कविता, कहानी और लेख नही लिख पाता हूँ , बस भावनाओ की गहराई में लिखने की कोशिश रहती है।
सारांश
बस यूँही बेवक्त बेवजह कुछ भी लिखने की आदत सी है मुझे
अपने जज्बातों को कागज़ पर उतारने की आदत सी है मुझे।
शुद्ध कविता, कहानी और लेख नही लिख पाता हूँ , बस भावनाओ की गहराई में लिखने की कोशिश रहती है।
आप द्वारा लिखी गई पंक्तिया बहुत ही अच्छी है इससे पता चलता है के कितना समय बदल गया है पहले जिसका ििनतजार होता था अब वो खत्म हो गया है पहले जो मजा था अब वो कहा है । पहले ििनतजार होता था डाकिये का अब वो फेसबुक और व्हाट्स आप पर सिमट कर राह गया है इसलिए आज कोई चिट्ठियां नही लिख पाता है पहले ओर आज में बहुत अंतर हो गया है।
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आप द्वारा लिखी गई पंक्तिया बहुत ही अच्छी है इससे पता चलता है के कितना समय बदल गया है पहले जिसका ििनतजार होता था अब वो खत्म हो गया है पहले जो मजा था अब वो कहा है । पहले ििनतजार होता था डाकिये का अब वो फेसबुक और व्हाट्स आप पर सिमट कर राह गया है इसलिए आज कोई चिट्ठियां नही लिख पाता है पहले ओर आज में बहुत अंतर हो गया है।
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