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मां को किसने मारा

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मानसी रात के खाने की सारी तैयारी कर सोफे पर पड़ गई, बच्चे अभी पढ़ रहे थे,और पति विनय ऑफिस वर्क कर रहे थे। लिहाजा उसके पास घंटे भर का समय था। अभी वह सोच ही रही थी ,कि इस 1 घंटे का उपयोग वह किस तरह ...

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लेखक के बारे में
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विद्या शर्मा

जन्म स्थान. प्रयागराज उत्तर प्रदेश 🌎 Women health and hygiene councillor अनेक पत्र-पत्रिकाओं एवं साहित्यिक मंच पर रचनाओं का प्रकाशन.📒

समीक्षा
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  • author
    आदित्य कुमार
    23 जनवरी 2019
    क्या लिखूं इस रचना के बारे मे मै पूरी तरह से समझ नही पा रहा हुँ क्योंकि ऐसा कोई शब्द नही है जिससे इसकी तारीफ की जा सके । पर इतना जरुर कहूंगा की मुझे बहुत सुन्दर लगी यह आपकी रचना । और रही बात इस कहानी पर टिप्पणी की तो यही कहूंगा की औरत ही औरत की सबसे बडी दुश्मन होती है । एक बेटा तबतक ही बेटा रहता है जबतक उसकी शादी ना हो जाये,शादी के बाद तो वह पति बन जाता है । तरस आता है ऐसे लोगों पर जो अपने माता-पिता को इस तरह से ट्रिट करते है,शायद वो भुल जाते है की जो उनके बच्चे देखेंगे वही सीखेंगे । 85% घरो मे मैने देखा है की यही हाल है । मै खुद अपने आप से सहमत नही हुँ क्योंकि जो लिखना चाहिये मुझे वो लिखा नही हुँ मैं । शब्द से बहुत बडे घाव हो जाते है,बस इतना ही सबसे गुजारिश करूंगा की माता-पिता से बढकर कोई नही इस दुनिया मे । उनकी सदैव इज्जत करें,क्योंकि इनके सिवा कोई नही दुसरा जो बिना मतलब के प्यार करे आपसे ।
  • author
    12 फ़रवरी 2019
    बड़ी ही मार्मिक कथा है जिसमें वर्तमान परिदृश्य को परिभाषित किया है सच में बड़ा ही कठिन प्रश्न उठाया है आपने की कोन जिम्मेदार है माँ की मृत्यु का आज भारत में ये एक समस्या के साथ ही चिंतन का भी विषय है क्योंकि बहुओं को अपने पति और बच्चों के सिवाय कुछ नज़र ही नही आता और वही बेटों की भी उतनी ही गलती है क्योंकि अगर घर की कमांड जब महिलाओं तक जाती है तो कन्हि न कन्हि व्यवस्थाएँ बिगड़ने के साथ ही बदलने भही लगती है ।। ओर आपकी पूरी कथा का जो जिष्ठ है ,,,वो ये है की महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन होती है ।। आपके भावों ओर आपकी कलम को नमन है धन्यवाद ।।
  • author
    मीरापरिहार
    03 दिसम्बर 2018
    सही फैसला लेने में देरी से पता चलता है कि हम कहीं न कहीं तो अपनी जिम्मेदारी से बचते ही हैं।बाद में हम कितने ही प्रश्न करें बहस गोष्ठी करलें समाज को जस का तस ही छोड़ देते हैं।एक नयी कहानी जो कि कर्तव्य की पृष्ठभूमि पर लिखी जाएगी,वहाँ इतनी सादगी और बिना जताए सब कुछ हो जाएगा कि प्रेरक बन पड़ेगा।
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    आदित्य कुमार
    23 जनवरी 2019
    क्या लिखूं इस रचना के बारे मे मै पूरी तरह से समझ नही पा रहा हुँ क्योंकि ऐसा कोई शब्द नही है जिससे इसकी तारीफ की जा सके । पर इतना जरुर कहूंगा की मुझे बहुत सुन्दर लगी यह आपकी रचना । और रही बात इस कहानी पर टिप्पणी की तो यही कहूंगा की औरत ही औरत की सबसे बडी दुश्मन होती है । एक बेटा तबतक ही बेटा रहता है जबतक उसकी शादी ना हो जाये,शादी के बाद तो वह पति बन जाता है । तरस आता है ऐसे लोगों पर जो अपने माता-पिता को इस तरह से ट्रिट करते है,शायद वो भुल जाते है की जो उनके बच्चे देखेंगे वही सीखेंगे । 85% घरो मे मैने देखा है की यही हाल है । मै खुद अपने आप से सहमत नही हुँ क्योंकि जो लिखना चाहिये मुझे वो लिखा नही हुँ मैं । शब्द से बहुत बडे घाव हो जाते है,बस इतना ही सबसे गुजारिश करूंगा की माता-पिता से बढकर कोई नही इस दुनिया मे । उनकी सदैव इज्जत करें,क्योंकि इनके सिवा कोई नही दुसरा जो बिना मतलब के प्यार करे आपसे ।
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    12 फ़रवरी 2019
    बड़ी ही मार्मिक कथा है जिसमें वर्तमान परिदृश्य को परिभाषित किया है सच में बड़ा ही कठिन प्रश्न उठाया है आपने की कोन जिम्मेदार है माँ की मृत्यु का आज भारत में ये एक समस्या के साथ ही चिंतन का भी विषय है क्योंकि बहुओं को अपने पति और बच्चों के सिवाय कुछ नज़र ही नही आता और वही बेटों की भी उतनी ही गलती है क्योंकि अगर घर की कमांड जब महिलाओं तक जाती है तो कन्हि न कन्हि व्यवस्थाएँ बिगड़ने के साथ ही बदलने भही लगती है ।। ओर आपकी पूरी कथा का जो जिष्ठ है ,,,वो ये है की महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन होती है ।। आपके भावों ओर आपकी कलम को नमन है धन्यवाद ।।
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    मीरापरिहार
    03 दिसम्बर 2018
    सही फैसला लेने में देरी से पता चलता है कि हम कहीं न कहीं तो अपनी जिम्मेदारी से बचते ही हैं।बाद में हम कितने ही प्रश्न करें बहस गोष्ठी करलें समाज को जस का तस ही छोड़ देते हैं।एक नयी कहानी जो कि कर्तव्य की पृष्ठभूमि पर लिखी जाएगी,वहाँ इतनी सादगी और बिना जताए सब कुछ हो जाएगा कि प्रेरक बन पड़ेगा।