खिड़की की ग्रिल से बाहर झांकती दो आंखें कहीं उड़ _उड़ जाने को बेचैन मन वह एक अकेली चिड़िया सी जो पिंजरे में कैद है , भोजन और पानी के साथ। आज उसके बच्चे दाना और पानी की तलाश में न जाने किस दिशा ...
खिड़की की ग्रिल से बाहर झांकती दो आंखें कहीं उड़ _उड़ जाने को बेचैन मन वह एक अकेली चिड़िया सी जो पिंजरे में कैद है , भोजन और पानी के साथ। आज उसके बच्चे दाना और पानी की तलाश में न जाने किस दिशा ...