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भोर की बेला

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रात के ख्वाब उतर पलकों से चलकर साथ सहर तक आये सारी कोशिश करके थक गए घर तक तेरे पहुँच ना पाये रात गयी अब बात रह गयी धुंधले हो गए रोशन साये देखो दी है ऊषा ने दस्तक भोर की बेला,तुम याद आये दिवस उजागर ...

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लेखक के बारे में
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अरुण झा

रचनाकर नहीं हूँ, रचनाधर्मिता का कायल हूँ मगर

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Alka Mishra "अलका श्री"
    19 August 2019
    वाह बहुत खूब
  • author
    Rachna Singh "Singh"
    25 February 2019
    बहुत सुन्दर
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    21 February 2019
    सराहनीय...
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    Alka Mishra "अलका श्री"
    19 August 2019
    वाह बहुत खूब
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    Rachna Singh "Singh"
    25 February 2019
    बहुत सुन्दर
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    Ravindra Narayan Pahalwan
    21 February 2019
    सराहनीय...