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बीस हजारी

4.3
9724

रोटी सेंकते ही चंपा बुदबुदा उठी बीस हजारी यही तो नाम था उसका।वह थाली मे दो रोटी अनमने से टुंगते अतीत के पन्ने उलटने लगी कितने अरमानो को सहेजे वह पति के साथ ससुराल राजस्थान के गावँ में आई थी।एक छोटा ...

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लेखक के बारे में

ना शोहरतों की ख्वाहिशें ना नफरतों की गुंजाइशें ना कोई गिला हैं ना कोई शिकवा बस जिंदगी तुझे जीने की आरज़ू है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    19 ઓગસ્ટ 2017
    जब हद से बढ़ जाए सितम.. तो उठाना ही पड़ते हैं ऐसे कदम.......
  • author
    Rahul Shrivastava
    21 જુન 2017
    wow
  • author
    Veena Jha
    15 મે 2017
    सही कदम...
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    19 ઓગસ્ટ 2017
    जब हद से बढ़ जाए सितम.. तो उठाना ही पड़ते हैं ऐसे कदम.......
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    Rahul Shrivastava
    21 જુન 2017
    wow
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    Veena Jha
    15 મે 2017
    सही कदम...