सुलक्षणा पंचतत्व मे विलीन हो रही थी। आग की लपटों ने उसको अपने आग़ोश मे ले लिया था । उसके जलने के साथ ही उसके और अमोल के सपने भी धू-धू कर पंचतत्व मे धुआँ हो रहे थे । इतना बड़ा दुख कोइ कैसे सहन कर पाता ...
मार्मिक कथा जिसमे संभावनाए बहुत थीं पर विवरणात्मक की अधिकता के कारण प्रभाव नहीं छोड़ सकी . शायद ये कहानी घटनाओं और वार्तालापों के सम्मिश्रण से अधिक प्रभावी बनाई जा सकती है .
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