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बहकने की जगह सम्भले

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सम्हलने की जगह बहके  बहकने  की  जगह   सम्भले। जमाना  ये    बदलते हैं    मगर   खुद को   न ये  बदले। छलांगे  इनकी   ऊंची हैं   कि   छूलें    चांद   तारों   को,  बड़े नादां मुसाफिर हैं  कि गिर कर ...

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लेखक के बारे में
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Satya Prakash

जो बुराई किया करते हैं हमारी वो मेरे नाम के लगते हैं पुजारी उनके जीने की दुआ करता हूँ 🙏🙏🙏9369195574, 9519107104

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    22 जुलाई 2019
    जिस भी सन्दर्भ में पढ़ें उसी में लाजवाब अर्थ देती कविता👌👌👌👌👌 उन्हें जीना कहाँ आया,जो मरते ही नहीं पहले... 👌👌👌👌👌 हैं नामंजूर वो बातें..... सारी पँक्तियाँ लाजवाब👏👏👏👏 निसन्देह उत्कृष्ट सृजन🙏
  • author
    20 सितम्बर 2019
    waah...bhai ji...bhut khub. beautiful creation 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻✍️✍️✍️✍️💐💐💐
  • author
    27 जुलाई 2019
    बहुत ही उम्दा रचना, शानदार।
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    22 जुलाई 2019
    जिस भी सन्दर्भ में पढ़ें उसी में लाजवाब अर्थ देती कविता👌👌👌👌👌 उन्हें जीना कहाँ आया,जो मरते ही नहीं पहले... 👌👌👌👌👌 हैं नामंजूर वो बातें..... सारी पँक्तियाँ लाजवाब👏👏👏👏 निसन्देह उत्कृष्ट सृजन🙏
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    20 सितम्बर 2019
    waah...bhai ji...bhut khub. beautiful creation 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻✍️✍️✍️✍️💐💐💐
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    27 जुलाई 2019
    बहुत ही उम्दा रचना, शानदार।