सम्हलने की जगह बहके बहकने की जगह सम्भले। जमाना ये बदलते हैं मगर खुद को न ये बदले। छलांगे इनकी ऊंची हैं कि छूलें चांद तारों को, बड़े नादां मुसाफिर हैं कि गिर कर ...
जिस भी सन्दर्भ में पढ़ें उसी में लाजवाब अर्थ देती कविता👌👌👌👌👌 उन्हें जीना कहाँ आया,जो मरते ही नहीं पहले... 👌👌👌👌👌 हैं नामंजूर वो बातें..... सारी पँक्तियाँ लाजवाब👏👏👏👏 निसन्देह उत्कृष्ट सृजन🙏
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