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फिसलता जाता समय

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कवि बदल रहे साल की आखिरी शाम में अपनी नायिका की समानताएं खोज रहा है। वह चाहता है कि प्रेमिका उसके साथ कुछ समय बिता ले, लेकिन प्रेमिका रुक जाने में असमर्थ है। तब कवि कहता है कि तुम समय हो जो ...

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लेखक के बारे में
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Vikas Porwal
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    संतोष नायक
    23 जुलाई 2019
    'तुम तय करने निकली हो ,सेकंड से मिनट की दूरी .....मैं अरमानों का दिसंबर पीछे रह जाऊंगा'।सही है'फिसलता जाता समय' कब पकड़ में आता है।बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।बधाई।
  • author
    अमित अस्थाना
    01 जून 2020
    वाह क्या बात है 👌
  • author
    Om shri Singh
    22 नवम्बर 2019
    very nice
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    संतोष नायक
    23 जुलाई 2019
    'तुम तय करने निकली हो ,सेकंड से मिनट की दूरी .....मैं अरमानों का दिसंबर पीछे रह जाऊंगा'।सही है'फिसलता जाता समय' कब पकड़ में आता है।बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।बधाई।
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    अमित अस्थाना
    01 जून 2020
    वाह क्या बात है 👌
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    Om shri Singh
    22 नवम्बर 2019
    very nice