फ़िरोज़ तुम सुन रहे हो न... मेरी जान निकली जा रही है, । तुम्हे या तुम्हारे परिवार को मैं स्वीकार तो होऊँगी...??? कैसे रिएक्ट करेंगे वो सब मुझे देखकर ।देखो मैं जैसी हूँ वैसी ही रहूँगी.... प्रेम में ...
मैं कॉपी नही कर सकती भावनाओं की, बस शब्द लिख सकती हूँ अहसास में गुंथे।
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सारांश
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इतिहास साक्षी है कि प्रेम की परीक्षा आदि काल से होती आयी है। इसके लिए कई धार्मिक एवं अन्य ग्रंथ उपलब्ध हैं जिसमें इसका विस्तृत विवरण देखा जा सकता है। आपने दो धर्मों जिनके बीच एक कथित दीवार धर्म के ठेकेदारों ने बना दिया है उसका उदाहरण संदर्भ के साथ रखा है यह काबीले तारीफ है। मानवता का धर्म ही सर्वोपरि है आपकी कहानी अपने पात्रों के माध्यम से इसे साबित करती है। धन्यवाद।
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अच्छा प्रयास है।लोगों को उनकी सोच के दायरे से बाहर निकाल कर इंसानियत प्रेम त्याग का अच्छा पाठ पढ़ाया है आपने।वक़्त की जरूरत के अनुसार इंसानों को खुद में बदलाव कर ही लेने चाहिए।प्रकाशवान रचना।बधाई हो, धन्यवाद,,🙏
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बहुत ही सुंदर कहानी है हिंदू मुस्लिम ना दिखाते हुए इंसानियत का परिचय दिया है जो कि सब में होना चाहिए क्योंकि हिंदू मुस्लिम तो सिर्फ जन्म से हो जाते हैं वरना हम सब तो एक ही परमात्मा की संतान है इतिहास गवाह है इस प्रकार की घटनाओं का जिसमें कितने ही मुस्लिमों ने हिंदुओं की रक्षा की है
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इतिहास साक्षी है कि प्रेम की परीक्षा आदि काल से होती आयी है। इसके लिए कई धार्मिक एवं अन्य ग्रंथ उपलब्ध हैं जिसमें इसका विस्तृत विवरण देखा जा सकता है। आपने दो धर्मों जिनके बीच एक कथित दीवार धर्म के ठेकेदारों ने बना दिया है उसका उदाहरण संदर्भ के साथ रखा है यह काबीले तारीफ है। मानवता का धर्म ही सर्वोपरि है आपकी कहानी अपने पात्रों के माध्यम से इसे साबित करती है। धन्यवाद।
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