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पीजीआई वार्ड नं १८

3.5
4875

कॉलेज पहुचते ही.....परी को देखा ... वो खिलखिला रही थी ... मुस्कुरा रही थी ..... वो बेहद खुश थी | और मैं .....घुट - घुट कर जी रहा था !! उस दिन परीक्षा के ३ घंटे मुझे अपने जीवन के सबसे कठोर घंटे ...

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लेखक के बारे में

न मैं कवि हूँ और न कोई शब्दों का खिलाडी. मुझे अपनी भावनाओ को व्यक्त करने के लिए चंद शब्दों की जरुरत पड़ती हैं और मेरे शब्दकोष का अल्पज्ञान कभी मुझे कोसता भी हैं मगर मैं जैसे तैसे शब्दों को पिरो कर अपनी तरफ से अपने उदगार व्यक्त करता हूँ। कभी वो कविता की शक्ल अख्तियार कर लेती हैं तो कभी वो शब्दों का ताना बाना. कभी कुछ लोग पढ़ लेते हैं और कभी कुछ लोग देख कर बकवास करार दे देते हैं......!! मगर मैं भी जिद्दी हूँ भावनाओ के उफान में बहकर फिर कुछ न कुछ लिख ही लेता हूँ बिना इस बात की परवाह किये की ये सिर्फ मेरे तक ही सीमित रह जाएँगी या कुछ लोगो को पसंद आएँगी., वास्तव में, मेरा सफ़र हैं इस खूबसूरत ज़िन्दगी का -जो भगवान ने हमें दी हैं....!!!

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    नीता राठौर
    12 अक्टूबर 2016
    आपकी दोनों कहानियां पढ़ीं।अच्छा लिखा है मगर परी क्यू गई,ये स्पष्ट नही हुआ।जानना चाहिये था।
  • author
    Gaurav Sisodia
    31 मार्च 2018
    ye Kya kahani Hai ...itni choti or pari ne use chooda kyu...
  • author
    jagdish prasad
    24 नवम्बर 2016
    Average story
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    नीता राठौर
    12 अक्टूबर 2016
    आपकी दोनों कहानियां पढ़ीं।अच्छा लिखा है मगर परी क्यू गई,ये स्पष्ट नही हुआ।जानना चाहिये था।
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    Gaurav Sisodia
    31 मार्च 2018
    ye Kya kahani Hai ...itni choti or pari ne use chooda kyu...
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    jagdish prasad
    24 नवम्बर 2016
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