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पिंजरे के पंछी

4.6
20757

गांव में रहने वाले एक सुखी रिटायर्ड दंपति की कहानी जो जब अपने बेटे के पास शहर जाता है तो क्या होता है ..... पढ़िए

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लेखक के बारे में
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नीरज नीर

मैं एक कवि एवं कहानीकार हूँ . मुझे अच्छा पढ़ना भी खूब भाता है . प्रकाशित काव्य संकलन : "जंगल में पागल हाथी और ढोल" , "पीठ पर रोशनी" कहानी संकलन : "ढुकनी एवं अन्य कहानियाँ" . सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों कवितायें एवं दर्जनों कहानियाँ प्रकाशित। सृजनलोक कविता सम्मान, प्रथम महेंद्र प्रताप स्वर्ण साहित्य सम्मान, ब्रजेन्द्र मोहन स्मृति साहित्य सम्मान, सूरज प्रकाश मारवाह साहित्य रत्न आदि से सम्मानित ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    प्रवीण कुमार
    02 अगस्त 2019
    कहानी के अंत मे दम्पत्ति को मारा नहीं जाना चाहिये था। कुछ ऐसा अंत होता जिससे बेटे बहु को और समाज को सीख मिलती तो अच्छा होता।
  • author
    Manju Dwivedi
    15 जून 2017
    एक फिल्म आई थी बागवान बहुत से लोगों का कहना था कि ऐसा कहीं होता है पर मेरा मानना है आसपास निगाहें डालने पर ऐसा ही दिखता है सच के एक महत्वपूर्ण पक्ष को उजागर करती एक बेहतरीन कहानी
  • author
    Sushma Singh
    14 जून 2017
    बहुत ही अच्छी कहानी है यह कहानी ही रहे किसी के साथ ऐसा न हो।
  • author
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    प्रवीण कुमार
    02 अगस्त 2019
    कहानी के अंत मे दम्पत्ति को मारा नहीं जाना चाहिये था। कुछ ऐसा अंत होता जिससे बेटे बहु को और समाज को सीख मिलती तो अच्छा होता।
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    Manju Dwivedi
    15 जून 2017
    एक फिल्म आई थी बागवान बहुत से लोगों का कहना था कि ऐसा कहीं होता है पर मेरा मानना है आसपास निगाहें डालने पर ऐसा ही दिखता है सच के एक महत्वपूर्ण पक्ष को उजागर करती एक बेहतरीन कहानी
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    Sushma Singh
    14 जून 2017
    बहुत ही अच्छी कहानी है यह कहानी ही रहे किसी के साथ ऐसा न हो।