चादर की ओट में, अपने नग्न शरीर को छुपाते हुए, वहीदा खड़े होने का प्रयास कर रही है, लेकिन रोहन हर बार हाथ खींच कर उसे बाहों में समेट लेता है। "अब छोड़ो भी .... मालूम है, दिन ढलने को है, अब्बू आते ...

प्रतिलिपिचादर की ओट में, अपने नग्न शरीर को छुपाते हुए, वहीदा खड़े होने का प्रयास कर रही है, लेकिन रोहन हर बार हाथ खींच कर उसे बाहों में समेट लेता है। "अब छोड़ो भी .... मालूम है, दिन ढलने को है, अब्बू आते ...