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नस्लीय, जातिगत और शोषणकारी पूंजीवाद के खिलाफ बिगुल है- फिल्म ‘काला’

4.8
198

फिल्म बताती है कि जमीन किसी सामंत या कॉरपोरेट की नहीं है बल्कि उन लोगों की है जिन्होंने इसे अपनी मेहनत से आजीविका और रहने लायक बनाया है. इस दृष्टि से यह धारावी की नहीं, बल्कि देश के उन सभी लोगों ...

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लेखक के बारे में
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Shyam Hardaha

नागपुर(महाराष्ट्र) ( कला, विधि एवं पत्रकारिता में स्नातक) मैं मूलत: पाठक हूं. मुझे भिन्न-भिन्न विचारों-भावों के प्रवाह में बहना और डूबना-उतराना अच्छा लगता है. बहुत अधिक मनो-भावनात्मक दबाव के बीच कभी-कभी लिख भी लेता हूं. प्रगतिशील विचारधारा के कवि-लेखकों में मुंशी प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, नागार्जुन, धूमिल, केदारनाथ अग्रवाल, गजानन माधव मुक्तिबोध,शमशेर बहादुर सिंह, राही मासूम रजा, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, कृष्णा सोबती, राजेंद्र यादव, अमृता प्रीतम, मन्नू भंडारी, रामविलास शर्मा आदि प्रगतिशील रचनाकारों ने मुझे गहरे तक प्रभावित किया है. महीने में कम से कम एक स्तरीय पुस्तक पढ़ने के प्रति मैं दृढ़ संकल्पित हूं. (अब तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन) [email protected]

समीक्षा
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    ravi chopde
    13 ఆగస్టు 2019
    फिल्म के विषय को समसामायिकता से जोड़कर दिल जीत लिया. फिल्म मैं ने देखी नहीं लेकिन शब्दों के माध्यम से आपके सर्वागसुंदर प्रस्तुतिकरण ने मुङो गद्गद् कर दिया. ‘काला’ की इतनी खूबसूरत समीक्षा फिल्म विषय का पंडित भी नहीं कर पाता..कीप इट अप..
  • author
    Shyam Bairagi
    19 ఆగస్టు 2019
    आपका लेख बहुत ही प्रेरणादायक है।लेख मन में उमंग और उत्साह भर देता है। जीवन के विविध रंगों को चित्रित करता आपका लेख बहुत ही प्रभावी है
  • author
    शान लुधियानवी
    24 ఆగస్టు 2019
    आप का यहां दादा साहेब फाल्के द्वारा स्थापित परम्परा को इस फिल्म का चुनौती देना बताया गया है जो के जरूरी भी है समाज की सोच बदलने के लिए...वो सोच जो एक धारणा बन गई है इस फिल्म इंडस्ट्री से लेकर आम समाज में.... मैने अभी यह फिल्म नहीं देखी है... पर आप की इस समीक्षा ने इस फिल्म को देखने के लिए प्रेरित किया है... ऐसे अदभुत लेखन के लिए मैं आप को बधाई देता हूं। शुक्रिया...
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    ravi chopde
    13 ఆగస్టు 2019
    फिल्म के विषय को समसामायिकता से जोड़कर दिल जीत लिया. फिल्म मैं ने देखी नहीं लेकिन शब्दों के माध्यम से आपके सर्वागसुंदर प्रस्तुतिकरण ने मुङो गद्गद् कर दिया. ‘काला’ की इतनी खूबसूरत समीक्षा फिल्म विषय का पंडित भी नहीं कर पाता..कीप इट अप..
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    Shyam Bairagi
    19 ఆగస్టు 2019
    आपका लेख बहुत ही प्रेरणादायक है।लेख मन में उमंग और उत्साह भर देता है। जीवन के विविध रंगों को चित्रित करता आपका लेख बहुत ही प्रभावी है
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    शान लुधियानवी
    24 ఆగస్టు 2019
    आप का यहां दादा साहेब फाल्के द्वारा स्थापित परम्परा को इस फिल्म का चुनौती देना बताया गया है जो के जरूरी भी है समाज की सोच बदलने के लिए...वो सोच जो एक धारणा बन गई है इस फिल्म इंडस्ट्री से लेकर आम समाज में.... मैने अभी यह फिल्म नहीं देखी है... पर आप की इस समीक्षा ने इस फिल्म को देखने के लिए प्रेरित किया है... ऐसे अदभुत लेखन के लिए मैं आप को बधाई देता हूं। शुक्रिया...