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देही क्रमशः 'धर्म ही कर्म है'

4.6
832

परिचय : देह, देही का बोध कराने व धर्म का उचित अर्थ समझाने के बाद अब भगवान दुविधा से व्याकुल अर्जुन को समझाएंगे कि, अगर देखा जाए तो तुमने स्वयं युद्ध की अभिलाषा कभी नहीं रखी। तुमने तो बार बार ...

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क्रमशः 'दृढ़ निश्चय और सम भावना'
क्रमशः 'दृढ़ निश्चय और सम भावना'
Sonal Harshit Mathur
4.5
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लेखक के बारे में
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Sonal Harshit Mathur

Writer has also published other books of short form such as 'निःशब्द' and 'चंद्रप्रताप' at amazon.com e- stores. Go and checkout, i hope you'll like them.

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ujwala Golvankar
    16 मई 2020
    खुप छान. धन्यवाद. तुम्ही गीता पारायण करता.
  • author
    Kalpana Kadam
    30 जुलाई 2020
    lekin Sangli aahe
  • author
    sonakshi
    16 मई 2020
    👌👍🙏
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ujwala Golvankar
    16 मई 2020
    खुप छान. धन्यवाद. तुम्ही गीता पारायण करता.
  • author
    Kalpana Kadam
    30 जुलाई 2020
    lekin Sangli aahe
  • author
    sonakshi
    16 मई 2020
    👌👍🙏