देवी हूंँ मैं, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, काली और चंडी हूं मैं , पूजी जाती मंदिर मंदिर, सृष्टि की आधार हूंँ मैं। परंतु, जब मैं आई तेरे धाम, बनकर तेरी ही प्रतिकृती, तब मन में भरकर अमर्ष, तूने किया ...
वास्तविक सत्य ही है कि अगर पूरे ब्रह्मांड की रचना का विस्तार अगर हुआ है तो वह सर्वप्रथम एक नारी से ही हुआ है आपने अपनी रचना से एक नारी की विशेषताओं को परिभाषित करने का जो प्रयास किया है वह आदरणीय है हम नमन करते हैं आपकी कल्पना को
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बेहतरीन शब्द और उसका चयन आपकी रचनात्मक क्षमता की पूर्णता को दिखाता है।वाक़ई में आपने नारी की समस्त शक्तियों के साथ उसके ओज को प्रकट किया है.....तारीफ के काबिल है आपकी कविता मैम
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