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दरवाज़ा खोलो ..

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" दरवाज़ा खोलो !!" " ठक ! ठक !! दरवाज़ा खोलो !!! रात के तीन बजे थे। सुजाता ठक -ठक की आवाज़ की और बढ़ी चली जा रही थी। बहुत बड़ी लेकिन सुनसान हवेली थी। चलते -चलते तहखाने के पास जा कर सुजाता के कदम रुक गए। ...

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लेखक के बारे में
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उपासना सियाग

उपासना सियाग  प्रकाशित रचनाएँ :      1 ) सरिता , सखी जागरण , दैनिक भास्कर और कई पत्र - पत्रिकाओं में कहानियाँ और कविताओं का प्रकाशन।       2 ) छह साँझा काव्य संग्रह और रश्मि प्रभा जी की पुस्तक में लेख ' औरत होना ही अपने आप में एक ताकत है '… का प्रकाशन।  पुरस्कार -सम्मान :-- 2011 का ब्लॉग रत्न अवार्ड , शोभना संस्था द्वारा।  अभिरुचियाँ :-- कहानी , कविता लिखने के साथ ही पढ़ने का भी शौक है।  शिक्षा : बी.एस.सी. (गृह विज्ञान ) महारानी कॉलेज जयपुर ( राजस्थान )  , ज्योतिष रत्न  ए.आई.ऍफ़.ए.एस.( AIFAS) दिल्ली। 

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    विकास कुमार
    21 मार्च 2018
    सुन्दर कहानी, कहने को तो हम कभी यह कहते हैं पुरूष गलत है , कभी कहते हैं स्त्री गलत है पर सच्चाई ये है की जिसका किरदार गलत है वही गलत है |
  • author
    20 मई 2017
    बहुत सुन्दर ।नारी मन के कोनो को उजागर करती कहानी ।एक बार उठाओ तो फिर खत्म किये बिना नहीं रहा जाता । साधुवाद
  • author
    रेवा टिबरेवाल
    21 अगस्त 2015
    aaj tak kitni kahniyan padhi....par ye kahani aisi ki jitni baar padho dubara padhne ko man karta hai 
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    विकास कुमार
    21 मार्च 2018
    सुन्दर कहानी, कहने को तो हम कभी यह कहते हैं पुरूष गलत है , कभी कहते हैं स्त्री गलत है पर सच्चाई ये है की जिसका किरदार गलत है वही गलत है |
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    20 मई 2017
    बहुत सुन्दर ।नारी मन के कोनो को उजागर करती कहानी ।एक बार उठाओ तो फिर खत्म किये बिना नहीं रहा जाता । साधुवाद
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    रेवा टिबरेवाल
    21 अगस्त 2015
    aaj tak kitni kahniyan padhi....par ye kahani aisi ki jitni baar padho dubara padhne ko man karta hai