pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

Untitled Story

4.9
96

पहाड़ियों के बीच बने रिसॉर्ट के कमरे में बैठा वह खिड़की से बाहर देख रहा था।उसकी प्यारी डायरी और कलम वहीं टेबुल पर रखी हुई थी।बहुत देर से सोच रहा था कि कुछ लिखे।पर,शुरूआत हो नहीं पा रही थी।पता नहीं ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा। यही मेरा ध्येय है।जब इच्छा हुई।कल्पना ने उड़ान भरी और लेखनी शुरु।लिखना तभी संपन्न होता है जब रचना पूर्ण हो जाये।घंटा भर या दो-तीन घंटे लगातार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेख,कवितायें,कथायें आदि प्रकाशित एवम् आकाशवाणी से प्रसारित। सम्प्रति-कार्यक्रम अधिशासी,आकाशवाणी,दरभंगा। चलभाष-9852230568.

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    दिव्या शर्मा
    16 जुलाई 2020
    स्त्री दैहिक आकर्षण में कभी नहीं बंधती। उसके मन में जीवन के अलग भाव होते हैं एक मासूम बच्चा उसके मन में बैठा होता है जो खुल कर खिलखिलाना और उड़ना चाहता है। बहुत अच्छी रचना है।
  • author
    Pooja Agnihotry
    16 जुलाई 2020
    स्त्री मन को खूबसूरती से समझने-समझाने वाली रचना। सच में स्त्री-हॄदय को निश्छल प्रेम से ही जीता जा सकता है। सुंदर रचना के लिये साधुवाद 💐💐
  • author
    16 जुलाई 2020
    क्या कहूँ बस सहज ही मन भर आया। बहुत बहुत प्यारी रचना है। कागज की नाव के साथ हम भी बह गये रचना पढ़ते हुये सर।🙏😊
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    दिव्या शर्मा
    16 जुलाई 2020
    स्त्री दैहिक आकर्षण में कभी नहीं बंधती। उसके मन में जीवन के अलग भाव होते हैं एक मासूम बच्चा उसके मन में बैठा होता है जो खुल कर खिलखिलाना और उड़ना चाहता है। बहुत अच्छी रचना है।
  • author
    Pooja Agnihotry
    16 जुलाई 2020
    स्त्री मन को खूबसूरती से समझने-समझाने वाली रचना। सच में स्त्री-हॄदय को निश्छल प्रेम से ही जीता जा सकता है। सुंदर रचना के लिये साधुवाद 💐💐
  • author
    16 जुलाई 2020
    क्या कहूँ बस सहज ही मन भर आया। बहुत बहुत प्यारी रचना है। कागज की नाव के साथ हम भी बह गये रचना पढ़ते हुये सर।🙏😊