आरती आज फिर उस चाय की गुमटी(छोटी दुकान) पर आयी थी. अक्सर आफिस की मशीनी चाय और मशीनी रूटिन से बोर होकर वो और उसके साथी इस चाय की गुमटी पर आ जाते थे, कुछ अगल ही स्वाद था इस छोटी सी दुकान की चाय का. ...
बहुत खूब लिखा है आपने इस रचना में सच्चाई झलक रही है जिंदगी की ।बधाई हो । किंतु पढ़ने की राह का कोई रास्ता होता । सभी साथियों से मिल कर तो एक नई शुरुआत होती । सहानुभूति दिखाना और अधर में छोड़ दिया । सार्थकता तो तब है जब पढ़ाई मंजिल तक पहुंचने की कोशिश हो। फिर भी बधाई । अन्यथा न ले ।
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बहुत खूब लिखा है आपने इस रचना में सच्चाई झलक रही है जिंदगी की ।बधाई हो । किंतु पढ़ने की राह का कोई रास्ता होता । सभी साथियों से मिल कर तो एक नई शुरुआत होती । सहानुभूति दिखाना और अधर में छोड़ दिया । सार्थकता तो तब है जब पढ़ाई मंजिल तक पहुंचने की कोशिश हो। फिर भी बधाई । अन्यथा न ले ।
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