pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

छत्रछाया

4.2
6310

*लोककथा - छत्रछाया* एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी | घर में उसे कोई भी प्यार नहीं करता था | बेटा-बहू उसे अपने सिर का बोझ समझते थे | एक दिन वह दुखियारी घर से निकल कर एक बगीचे की ओर चल दी, जहाँ बहुत ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

जन्म तिथि और स्थान – ५ फरवरी राजस्थान - भारत ३ – शिक्षा – स्नातक संगीत ४ – कार्य क्षेत्र – साहित्य, संगीत, अध्यात्म और समाज सेवा ५ – प्रकाशित कृतियाँ – कुछ रचनाएँ पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित ६ – सम्मान व पुरस्कार – गायन मंच पर ७ – संप्रति – स्वतंत्र लेखन ८ – ईमेल – [email protected]

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rajeev Kumar Singh
    24 जानेवारी 2019
    कहानियां पढने मे तो आनंद आते. लेकिन जब मोके आते हैं तो शायद हम पीछे हटने मे अपनी आनंद महशुस करते है।
  • author
    Ravisankar Peddi
    03 जुन 2017
    बूढ़े लोगों की स्तिधि वृक्षों के साथ तुलना करके अच्छा सन्देश दिया गया है
  • author
    कल्पना रामानी
    20 एप्रिल 2017
    अति सुन्दर भाव...बधाई
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rajeev Kumar Singh
    24 जानेवारी 2019
    कहानियां पढने मे तो आनंद आते. लेकिन जब मोके आते हैं तो शायद हम पीछे हटने मे अपनी आनंद महशुस करते है।
  • author
    Ravisankar Peddi
    03 जुन 2017
    बूढ़े लोगों की स्तिधि वृक्षों के साथ तुलना करके अच्छा सन्देश दिया गया है
  • author
    कल्पना रामानी
    20 एप्रिल 2017
    अति सुन्दर भाव...बधाई