सोचा मैंने छत पर जाकर, मेरे चांद से मिल लूं, कुछ घड़ियों का सुकूं चुराकर दो बातें मन की भी कर लूं, तय कोने पर पहुंची पर वो वहां नहीं था, पीछे मुड़ के देखा तो वो समझ सा आया, आज पश्चिम से निकला था ...
आज भी जब किसी चाँद को अपने चाँद के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तो वह अपना चाँद हो जाता है। हमें अपनापन को अपनी ओर से भी भरने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन दूसरे के चाँद का तो डरावना लगना स्वाभाविक ही है।
मोनिका त्रिपाठी जी की रचना " चांद डरावना लगता है..?? " वास्तव में सुन्दर सलोना चांद भी कभी-कभी सोचने के लिए मजबूर कर देता है।
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आज भी जब किसी चाँद को अपने चाँद के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तो वह अपना चाँद हो जाता है। हमें अपनापन को अपनी ओर से भी भरने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन दूसरे के चाँद का तो डरावना लगना स्वाभाविक ही है।
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