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जाँम बन जाऊं

4.4
3518

जब छूता है पैमाना तेरे होठों को दिल ये करता है मैं जाँम बन जाऊं तेरी ज़िन्दगी को खुबशूरत बना दे ऐसी मदहोश शाम बन जाऊं तेरी खातिर फरवरी की पहली धूप तेरे लिए जून   की दोपहर का आराम बन ...

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लेखक के बारे में
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प्रिया सिंह

भावनाओं को शब्द देने की कोशिश करती हूँ , अपने आस पास की जिंदगियों को पन्नो पर उकेरना पसंद है । ज्यादा कुछ है नहीं कहने को अपने बारे में , जो भी लिखती हूँ आपको अच्छा लगे उम्मीद करती हूँ। कृपया मेरी रचना पसंद आए तो बताएं जरूरी प्रोत्साहन के लिए लाइक कमेंट करते रहें। Insta id ishq_life U can contact me on [email protected] follow me on Instagram world_from_my_lens20

समीक्षा
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    000 Ooooo "Oooo"
    14 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2019
    मेरे को तो अभी तक समझ नहीं आया गुमनामी में ही क्यूँ जाता है मन शायद हम गुमनामी में अपने करीब होते है क्या पता मुझे नहीं पता,.... कुछ भी हो आपने लिखा सही है
  • author
    13 ಮಾರ್ಚ್ 2018
    आदरणीया प्रिया सिंह जी, आप की या नज्म बहुत खूबसूरत है। यह मुकम्मल होती अगर इसमें कुछ और बंद जुड़ते! बहुत सुन्दर प्रयास! मेरा साधुवाद स्वीकार करें! इसी साइट पर मेरी अन्य रचनायें भी अवश्य पढें और अपने विचारों से अवगत करायें। आप मेरा ब्लोग #BnmRachnaWorld पर जाकर marmagyanet.blogspot.com पर अवश्य विसिट करें और अपने विचार दें। मेरी लिखी दूसरी पुस्तक उपन्यास के रूप में "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" के नाम से हिंद युग्म से प्रकाशित हो चुकी है। पुस्तक के कथानक के बारे में: यह छोटे शहर में स्थापित ऐसे डिग्री कॉलेज की कहानी है जिसके पास से रेलवे लाइन गुजरती है। इसलिए विद्यार्थी अपने पीरियड के विषय से अधिक उस ओर से गुजरने वाली ट्रेन के समय की जानकारी रखते हैं। कॉलेज की पढाई करते - करते समय की गलियों से यूँ गुजरना। कुछ तोंद वाले सर, कुछ दुबले -पतले सर, कुछ चप्प्लों में सर, कुछ जूतों में सर। जैसे कॉलेज की दीवार से सटे रेलवे लाईन पर ट्रेनों का गुजरना। इसी बीच पनपता प्यार, विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच। छात्र परिषद के चुनाव की घोषणा होते ही बाहरी तत्वों के घुसपैठ से, कॉलेज के शान्त वातावरण का पुल - सा कम्पित होना, थर्राना। ये सब कुछ और इससे भी अधिक बहुत कुछ... पढें उपन्यास "डिवाईडर पर कॉलेज जंक्शन" में*** अभी यह आमज़ोन के साइट से ऑन लाईन मात्र 79रु में ( अंकित मूल्य से 36रु कम) मँगाई जा सकती है। इस लिंक पर जाकर मंगाएं: link: http://amzn.to/2Ddrwm1 आमज़ोन पर customer review लिखें और मेरी लिखी पुस्तक "छाँव का सुख" डाक द्वारा मुफ्त प्राप्त करें। अपना पता मेरे ई मेल : [email protected] पर भेज दें।
  • author
    सम्राट ,, तन्हा ,,
    02 ಡಿಸೆಂಬರ್ 2018
    आज के दौर मे कहा लोग हकीकत से वास्ता रखते है यहाँ लोग चेहरे पर चेहरा रखते है । इक ही छत के नीचे रहकर लोग अपना , अपना अलग खुदा रखते है ।
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    000 Ooooo "Oooo"
    14 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2019
    मेरे को तो अभी तक समझ नहीं आया गुमनामी में ही क्यूँ जाता है मन शायद हम गुमनामी में अपने करीब होते है क्या पता मुझे नहीं पता,.... कुछ भी हो आपने लिखा सही है
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    13 ಮಾರ್ಚ್ 2018
    आदरणीया प्रिया सिंह जी, आप की या नज्म बहुत खूबसूरत है। यह मुकम्मल होती अगर इसमें कुछ और बंद जुड़ते! बहुत सुन्दर प्रयास! मेरा साधुवाद स्वीकार करें! इसी साइट पर मेरी अन्य रचनायें भी अवश्य पढें और अपने विचारों से अवगत करायें। आप मेरा ब्लोग #BnmRachnaWorld पर जाकर marmagyanet.blogspot.com पर अवश्य विसिट करें और अपने विचार दें। मेरी लिखी दूसरी पुस्तक उपन्यास के रूप में "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" के नाम से हिंद युग्म से प्रकाशित हो चुकी है। पुस्तक के कथानक के बारे में: यह छोटे शहर में स्थापित ऐसे डिग्री कॉलेज की कहानी है जिसके पास से रेलवे लाइन गुजरती है। इसलिए विद्यार्थी अपने पीरियड के विषय से अधिक उस ओर से गुजरने वाली ट्रेन के समय की जानकारी रखते हैं। कॉलेज की पढाई करते - करते समय की गलियों से यूँ गुजरना। कुछ तोंद वाले सर, कुछ दुबले -पतले सर, कुछ चप्प्लों में सर, कुछ जूतों में सर। जैसे कॉलेज की दीवार से सटे रेलवे लाईन पर ट्रेनों का गुजरना। इसी बीच पनपता प्यार, विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच। छात्र परिषद के चुनाव की घोषणा होते ही बाहरी तत्वों के घुसपैठ से, कॉलेज के शान्त वातावरण का पुल - सा कम्पित होना, थर्राना। ये सब कुछ और इससे भी अधिक बहुत कुछ... पढें उपन्यास "डिवाईडर पर कॉलेज जंक्शन" में*** अभी यह आमज़ोन के साइट से ऑन लाईन मात्र 79रु में ( अंकित मूल्य से 36रु कम) मँगाई जा सकती है। इस लिंक पर जाकर मंगाएं: link: http://amzn.to/2Ddrwm1 आमज़ोन पर customer review लिखें और मेरी लिखी पुस्तक "छाँव का सुख" डाक द्वारा मुफ्त प्राप्त करें। अपना पता मेरे ई मेल : [email protected] पर भेज दें।
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    सम्राट ,, तन्हा ,,
    02 ಡಿಸೆಂಬರ್ 2018
    आज के दौर मे कहा लोग हकीकत से वास्ता रखते है यहाँ लोग चेहरे पर चेहरा रखते है । इक ही छत के नीचे रहकर लोग अपना , अपना अलग खुदा रखते है ।