मॉल में जाकर महंगी से महंगी चीजें खाने में वह आनंद नहीं जो गांव में चुपके से गुड चुराकर खाने में आता था आज शहरों की महंगी से महंगी मिठाई में वो स्वाद कहाँ जो कभी-कभार मिलने वाली लापसी में था। ...
Kapil Tiwari
जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए,
हमने हर तरह के फूल हार में पिरो लिए।
इस राह में मिली फ़क़त ठोकरें और दर्द,
फिर भी हम अपनी झोली लेके चल दिए।
हम सब अपने आप में एक व्यक्ति नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत हैं।
विकिपीडिया-kapil tiwari benaam
सारांश
Kapil Tiwari
जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए,
हमने हर तरह के फूल हार में पिरो लिए।
इस राह में मिली फ़क़त ठोकरें और दर्द,
फिर भी हम अपनी झोली लेके चल दिए।
हम सब अपने आप में एक व्यक्ति नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत हैं।
विकिपीडिया-kapil tiwari benaam
गाँव की याद आ गयी😇 जरा सी भी चोट लग जाने पर नीम की छाल कही जमीन पर पड़ी पत्थर पर भी थोड़े पानी के साथ रगड़ कर लगा लेते थे😀 घर घर खेलने में मशाले के रूप में भी इस्तेमाल होता था😂😂😂 मेरा भाई स्कूल के साथ साथ घर भी वैसा डण्डा बना के रख देता था और उससे हम दोनों की पिटाई होती थी😛😛😛खटिया पर बैठ के बाबा से राम जी की कहानी सुनते थे😍😍....आपका यह लेख बचपन की यादों का गुलदस्ता सा प्रतीत होता है 😇😇🙏🙏
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सत्य है ।
तुलना तो हो ही नही सकती ।
गांव का जीवन ही अलग है, सत्य के निकट, प्रकृति के निकट, परिवार के निकट और स्वयं के निकट ।
आप का सदा मंगल हो, कामना के साथ
जय श्री राधे कृष्ण 🍁🌸🙏🍁🌸
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बहुत शानदार लिखा है ।ये तो बिल्कुल हमारे बचपन को दर्शाता है,अब वो बात कहा हो बचपन में थी।ऐसा बचपन अब किसी का नहीं होगा क्योकी अब वो समय लौट कर कभी नहीं आएगा।मोबाइल ने बचपना छीन लिया है।
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गाँव की याद आ गयी😇 जरा सी भी चोट लग जाने पर नीम की छाल कही जमीन पर पड़ी पत्थर पर भी थोड़े पानी के साथ रगड़ कर लगा लेते थे😀 घर घर खेलने में मशाले के रूप में भी इस्तेमाल होता था😂😂😂 मेरा भाई स्कूल के साथ साथ घर भी वैसा डण्डा बना के रख देता था और उससे हम दोनों की पिटाई होती थी😛😛😛खटिया पर बैठ के बाबा से राम जी की कहानी सुनते थे😍😍....आपका यह लेख बचपन की यादों का गुलदस्ता सा प्रतीत होता है 😇😇🙏🙏
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बहुत शानदार लिखा है ।ये तो बिल्कुल हमारे बचपन को दर्शाता है,अब वो बात कहा हो बचपन में थी।ऐसा बचपन अब किसी का नहीं होगा क्योकी अब वो समय लौट कर कभी नहीं आएगा।मोबाइल ने बचपना छीन लिया है।
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