pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

क्वार्टर नम्बर तेइस

3.8
36361

माँ और तीनों बहनों की हँसी अशोक ने बाहर से ही सुन ली| हमेशा की तरह इस बार भी हँसी उसे अचरज तथा रोष से भर गयी| रेल गाड़ियों के धुएं और धमाके के हर दूसरेपल पर डोल रहे इस क्वार्टर नंबरतेइसमें रह कर भी ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
दीपक शर्मा

जन्म : ३० नवम्बर, १९४६ (लाहौर, अविभाजित भारत) लखनऊ क्रिश्चियन कालेज के स्नातकोत्तर अंग्रेज़ी विभाग से अध्यक्षा, रीडर के पद से सेवा-निवृत्त। प्रकाशन : सोलह कथा-संग्रह : १. हिंसाभास (१९९३) किताब-घर, दिल्ली २. दुर्ग-भेद (१९९४) किताब-घर, दिल्ली ३. रण-मार्ग (१९९६) किताब-घर, दिल्ली ४. आपद-धर्म (२००१) किताब-घर, दिल्ली ५. रथ-क्षोभ (२००६) किताब-घर, दिल्ली ६. तल-घर (२०११) किताब-घर, दिल्ली ७. परख-काल (१९९४) सामयिक प्रकाशन, दिल्ली ८. उत्तर-जीवी (१९९७) सामयिक प्रकाशन, दिल्ली ९. घोड़ा एक पैर (२००९) ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली १०. बवंडर (१९९५) सत्येन्द्र प्रकाशन, इलाहाबाद ११. दूसरे दौर में (२००८) अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद १२. लचीले फ़ीते (२०१०) शिल्पायन, दिल्ली १३. आतिशी शीशा (२०००) आत्माराम एंड सन्ज़, दिल्ली १४. चाबुक सवार (२००३) आत्माराम एंड सन्ज़, दिल्ली १५. अनचीता (२०१२) मेधा बुक्स, दिल्ली १६. ऊँची बोली (२०१५) साहित्य भंडार, इलाहाबाद १७. बाँकी (साहित्य भारती, इलाहाबाद द्वारा शीघ्र प्रकाश्य)

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manju Lata Gola
    21 अगस्त 2019
    पुरुष हमेशा से दम्भी होता है उसे नारी की सदाशयता पर भी शंका होती है उसकी मदद लेना जैसे उसका अपमान हो ,शीर्षक कहानी को सार्थक नहीं करता है ,अच्छी कहानी ।
  • author
    pc jain
    19 सितम्बर 2020
    कहानी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण बहुत अच्छा है।आज भी यह सबके जीवन की सच्चाई है। अच्छी लगी।
  • author
    AnshuPriya Agrawal
    05 मार्च 2020
    बहुत सुंदर कहानी कथावस्तु बहुत ही सार्थक, हर पात्र बहुत सजीवता से गढ़े गए हैं, मानों कोई चलचित्र चल रही हो, 🙏🙏 👌👌🙏💐 आपकी प्रशंसा के लिए और बधाई देने के लिये शब्दों की कमी महसूस कर रही हूँ ..... बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manju Lata Gola
    21 अगस्त 2019
    पुरुष हमेशा से दम्भी होता है उसे नारी की सदाशयता पर भी शंका होती है उसकी मदद लेना जैसे उसका अपमान हो ,शीर्षक कहानी को सार्थक नहीं करता है ,अच्छी कहानी ।
  • author
    pc jain
    19 सितम्बर 2020
    कहानी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण बहुत अच्छा है।आज भी यह सबके जीवन की सच्चाई है। अच्छी लगी।
  • author
    AnshuPriya Agrawal
    05 मार्च 2020
    बहुत सुंदर कहानी कथावस्तु बहुत ही सार्थक, हर पात्र बहुत सजीवता से गढ़े गए हैं, मानों कोई चलचित्र चल रही हो, 🙏🙏 👌👌🙏💐 आपकी प्रशंसा के लिए और बधाई देने के लिये शब्दों की कमी महसूस कर रही हूँ ..... बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें