किसी ने कमेंट लिखा है कि " लेखक ने समाज की सोच को हूबहू उतारा है " यानी वास्तविक चित्रण किया है समाज के यथार्थ का, यद्यपि रचनाकार जब सामाजिक यथार्थ को देखता है तब वह घटनाक्रमों की तस्वीर नहीं उतारता, अपनी अंतर्दृष्टि से वह घटनाक्रम की परतों में छिपा सत्य ढूंढता है, क्या दिख रहा है कि जगह क्या दिखना चाहिए बताता है। एक बहुत अच्छी लिखी रचना में यह कमी कुछ खटकती है।
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me bahut achhe se samajh skti hu is story ko feel kr skti hu kyuki me bhi divorcee hu..us dukh or takleef ko hm bta nhi skte.bs tadpte rah jate h..zinda laash jese
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