आपकी रचना काबिले तारीफ है ✍️👌👌💐 काश हर व्यक्ति समझ पाता इस बात को तो आज प्राकृतिक भी मुस्कुराती हुई नजर आती।
प्राकृतिक अपना हाले - ग़म सुनाए किसे दोस्तों ।
मन की छटपटाहट तो गिरते कटते पेड़ों से पूछो ।।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
सभ्यताएं सिर्फ अस्त नही होती
सदानीरा नदियों के मरुभूमि में खोने से।
सभ्यताएं तब भी अस्त होती है
जब हमेशा आंखों में नमी रखने वालों के
हृदय शुष्क मरुस्थल के जैसे हो जाते है।
सभ्यताएं तब नष्ट हो जाती है जब
हरे भरे खिलखिलाते लोग
काठ और ठूंठ हो जाते है।
सभ्यता तब भी बच जाती है जब
आसमान में पराबैंगनी किरणों को
रोकने वाली परतों ने छिद्र होते है।
पर सभ्यताओं के विनाश हो जाते है
जब जीवन की उष्ण और क्रूर
सच्चाइयों से रक्षा करने वाले
भीष्म के होते भी द्रोपदी चीरहरण जैसा
अक्षम्य अपराध हो जाता है।
ध्रुवों पर हिम के पिघलने से तो
सभ्यताओं को फिर भी बचाया जा सकता है ।
पर सभ्यताएं मृतप्राय होने लगती है
जब निरीह और निहत्थे अभिमन्यु को
अनैतिक वध पर
गुरुश्रेष्ठ द्रोणाचार्य का आंखों से
रक्त अश्रु बनकर नही पिघलता।
जब पल बदलने पर
नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा हो।
जब मानव की मानवता के
जीवाश्म भी नदारद होने लगे।
जब मानव ईश्वर बनने की होड़ में
पशुवत हो जाये
जब स्वर्ग की अभिलाषा में
कर्म रसातल में ले जाये।
जब आप एक बच्चे की
किलकारी पर हंस न सके
औऱ रुदन आपको विचलित न कर पाए
तब ऐसी सभ्यताओं का विनाश
अवश्यम्भावी हो जाता है।
श्वेता खरे
स्वरचित
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
बहुत सुन्दर धरती भी चित्कार करती है प्रकृति रोेती है तब सारी सृष्टि त्राहि माहम
करती है मनुष्य विनाश को खुद न्यौता दे रहा है जब सृष्टि अपने आप इंतकाम लेती है 🌹🙏
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हृदय शुष्क मरुस्थल के जैसे हो जाते है।
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हरे भरे खिलखिलाते लोग
काठ और ठूंठ हो जाते है।
सभ्यता तब भी बच जाती है जब
आसमान में पराबैंगनी किरणों को
रोकने वाली परतों ने छिद्र होते है।
पर सभ्यताओं के विनाश हो जाते है
जब जीवन की उष्ण और क्रूर
सच्चाइयों से रक्षा करने वाले
भीष्म के होते भी द्रोपदी चीरहरण जैसा
अक्षम्य अपराध हो जाता है।
ध्रुवों पर हिम के पिघलने से तो
सभ्यताओं को फिर भी बचाया जा सकता है ।
पर सभ्यताएं मृतप्राय होने लगती है
जब निरीह और निहत्थे अभिमन्यु को
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गुरुश्रेष्ठ द्रोणाचार्य का आंखों से
रक्त अश्रु बनकर नही पिघलता।
जब पल बदलने पर
नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा हो।
जब मानव की मानवता के
जीवाश्म भी नदारद होने लगे।
जब मानव ईश्वर बनने की होड़ में
पशुवत हो जाये
जब स्वर्ग की अभिलाषा में
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जब आप एक बच्चे की
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