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काल चक्र✍️ प्रद्युम्न कुमार

1668
4.6

जब कोई सभ्यता अपने यौवन के प्रचंड दोपहरी में अस्त हो जाती है जब कोई सदानी रा नदी की धार मरुभूमि में कहीं खो जाती है जब विस्तृत वितान फैलाये जंगलों को नष्ट होते देखा जाता है जब उर्वर मिट्टी ...