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काल चक्र✍️ प्रद्युम्न कुमार

4.6
1663

अतीत से वर्तमान तक: इतिहास की कहानी; कविता की जुबानी। आगे पढ़ें...

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लेखक के बारे में
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प्रद्युम्न

एकम् सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति @Copyright reserve फेसबुक पेज: काव्यांजलि X: @Pradumn96427973 Yq: Pradumn प्रवक्ता इतिहास

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    Sneha
    05 जून 2021
    आपकी रचना काबिले तारीफ है ✍️👌👌💐 काश हर व्यक्ति समझ पाता इस बात को तो आज प्राकृतिक भी मुस्कुराती हुई नजर आती। प्राकृतिक अपना हाले - ग़म सुनाए किसे दोस्तों । मन की छटपटाहट तो गिरते कटते पेड़ों से पूछो ।।
  • author
    Shweta Khare
    29 सितम्बर 2022
    सभ्यताएं सिर्फ अस्त नही होती सदानीरा नदियों के मरुभूमि में खोने से। सभ्यताएं तब भी अस्त होती है जब हमेशा आंखों में नमी रखने वालों के हृदय शुष्क मरुस्थल के जैसे हो जाते है। सभ्यताएं तब नष्ट हो जाती है जब हरे भरे खिलखिलाते लोग काठ और ठूंठ हो जाते है। सभ्यता तब भी बच जाती है जब आसमान में पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली परतों ने छिद्र होते है। पर सभ्यताओं के विनाश हो जाते है जब जीवन की उष्ण और क्रूर सच्चाइयों से रक्षा करने वाले भीष्म के होते भी द्रोपदी चीरहरण जैसा अक्षम्य अपराध हो जाता है। ध्रुवों पर हिम के पिघलने से तो सभ्यताओं को फिर भी बचाया जा सकता है । पर सभ्यताएं मृतप्राय होने लगती है जब निरीह और निहत्थे अभिमन्यु को अनैतिक वध पर गुरुश्रेष्ठ द्रोणाचार्य का आंखों से रक्त अश्रु बनकर नही पिघलता। जब पल बदलने पर नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा हो। जब मानव की मानवता के जीवाश्म भी नदारद होने लगे। जब मानव ईश्वर बनने की होड़ में पशुवत हो जाये जब स्वर्ग की अभिलाषा में कर्म रसातल में ले जाये। जब आप एक बच्चे की किलकारी पर हंस न सके औऱ रुदन आपको विचलित न कर पाए तब ऐसी सभ्यताओं का विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है। श्वेता खरे स्वरचित
  • author
    Shailja Sharma
    04 जुलाई 2021
    बहुत सुन्दर धरती भी चित्कार करती है प्रकृति रोेती है तब सारी सृष्टि त्राहि माहम करती है मनुष्य विनाश को खुद न्यौता दे रहा है जब सृष्टि अपने आप इंतकाम लेती है 🌹🙏
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    Sneha
    05 जून 2021
    आपकी रचना काबिले तारीफ है ✍️👌👌💐 काश हर व्यक्ति समझ पाता इस बात को तो आज प्राकृतिक भी मुस्कुराती हुई नजर आती। प्राकृतिक अपना हाले - ग़म सुनाए किसे दोस्तों । मन की छटपटाहट तो गिरते कटते पेड़ों से पूछो ।।
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    Shweta Khare
    29 सितम्बर 2022
    सभ्यताएं सिर्फ अस्त नही होती सदानीरा नदियों के मरुभूमि में खोने से। सभ्यताएं तब भी अस्त होती है जब हमेशा आंखों में नमी रखने वालों के हृदय शुष्क मरुस्थल के जैसे हो जाते है। सभ्यताएं तब नष्ट हो जाती है जब हरे भरे खिलखिलाते लोग काठ और ठूंठ हो जाते है। सभ्यता तब भी बच जाती है जब आसमान में पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली परतों ने छिद्र होते है। पर सभ्यताओं के विनाश हो जाते है जब जीवन की उष्ण और क्रूर सच्चाइयों से रक्षा करने वाले भीष्म के होते भी द्रोपदी चीरहरण जैसा अक्षम्य अपराध हो जाता है। ध्रुवों पर हिम के पिघलने से तो सभ्यताओं को फिर भी बचाया जा सकता है । पर सभ्यताएं मृतप्राय होने लगती है जब निरीह और निहत्थे अभिमन्यु को अनैतिक वध पर गुरुश्रेष्ठ द्रोणाचार्य का आंखों से रक्त अश्रु बनकर नही पिघलता। जब पल बदलने पर नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा हो। जब मानव की मानवता के जीवाश्म भी नदारद होने लगे। जब मानव ईश्वर बनने की होड़ में पशुवत हो जाये जब स्वर्ग की अभिलाषा में कर्म रसातल में ले जाये। जब आप एक बच्चे की किलकारी पर हंस न सके औऱ रुदन आपको विचलित न कर पाए तब ऐसी सभ्यताओं का विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है। श्वेता खरे स्वरचित
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    Shailja Sharma
    04 जुलाई 2021
    बहुत सुन्दर धरती भी चित्कार करती है प्रकृति रोेती है तब सारी सृष्टि त्राहि माहम करती है मनुष्य विनाश को खुद न्यौता दे रहा है जब सृष्टि अपने आप इंतकाम लेती है 🌹🙏