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औरत के हर महीने का दर्द

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पीरियड़ का समय (संवेदनशील विषय)- हर लड़की के जीवन से जुडी बात, जिसे कहने में अक्सर हम लड़कियां हिचकिचा जाती हैं, शर्मा जाती हैं, पर आज ऐसी ही ना जाने कितनी लड़कियां हैं, जिनकी माहवारी (पीरियड़) ...

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लेखक के बारे में

लोगों की भीड़ से निकली साधारण लड़की जिसकी पहचान बेबाक और स्वतंत्र लेखन है ! जैसे तरह-तरह के हज़ारों पंछी होते हैं, उनकी अलग चहकाहट "बोली-आवाज़", रंग-ढंग होते हैं ! वेसे ही मेरा लेखन है जो तरह -तरह की भिन्नता से - विषयों से परिपूर्ण है ! मेरा लेखन स्वतंत्र है, बे-झिझक लेखन ही मेरी पहचान है !! युवा लेखिका, सामाजिक चिंतक जयति जैन "नूतन" पति का नाम - इं. मोहित जैन । 1: जन्म - 01-01-1992 2: जन्म / जन्म स्थान - रानीपुर जिला झांसी 3: स्थायी पता- जयति जैन "नूतन ", 441, सेक्टर 3 , शक्तिनगर भोपाल , पंचवटी मार्केट के पास ! pin code - 462024 4: ई-मेल- [email protected] 5: शिक्षा /व्यवसाय- डी. फार्मा , बी. फार्मा , एम. फार्मा ,/ फार्मासिस्ट , लेखिका 6: विधा - कहानी , लघुकथा , कविता, लेख , दोहे, मुक्तक, शायरी,व्यंग्य 7: प्रकाशित रचनाओं की संख्या- 650 से ज्यादा रचनायें समाचार पत्रों व पत्रिकाओ में प्रकाशित 8: प्रकाशित रचनाओं का विवरण - जनक्रति अंतराष्ट्रीय मासिक पत्रिका में, सामाजिक लेखन, राष्ट्रीय दैनिक, साप्ताहिक अख्बार, पत्रिकाये , चहकते पंछी ब्लोग, साहित्यपीडिया, शब्दनगरी, www.momspresso.com व प्रतिलिपि वेबसाइट, international news and views.com (INVC) पर ! 9: सम्मान- - श्रेष्ठ नवोदित रचनाकार सम्मान से सम्मानित ! - अंतरा शब्द शक्ति सम्मान 2018 से सम्मानित ! - हिंदी सागर सम्मान - श्रेष्ठ युवा रचनाकार सम्मान - कागज़ दिल साहित्य सुमन सम्मान - वुमन आवाज़ अवार्ड 2018 - हिंदी लेखक सम्मान - भाषा सारथी सम्मान 10: अन्य उपलब्धि- बेबाक व स्वतंत्र लेखिका ! हिंदी सागर त्रेमासिक पत्रिका में " अतिथि संपादक " 11:- लेखन का उद्देश्य- समाज में सकारात्मक बदलाव ! 12: एकल संग्रह - वक़्त वक़्त की बात ( लघुकथा संग्रह, 20 पृष्ठ) एकल संग्रह- राष्ट्रभाषा औऱ समाज (32 पृष्ठ) साझा काव्य संग्रह A- मधुकलश B- अनुबंध C- प्यारी बेटियाँ D- किताबमंच E- भारत के युवा कवि औऱ कवयित्रियाँ । F - काव्य स्पंदन पितृ विशेषांक G- समकालीन हिंदी कविता । H- साहित्य संगम संस्थान से प्रकाशित उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन I- अनकहे एहसास J- वुमन आवाज महिला विषेषांक K- रेलनामा 13: अनगिनत ऑनलाइन व ऑफलाइन पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रही हैं रचनाएँ । 14- रानीपुर (जिला झांसी उप्र) की पहली लेखिका होने का गौरव । 15- लेखन के क्षेत्र में 2010 से अब तक । ---- " आप गूगल पर जयति जैन नूतन या जयति जैन रानीपुर डाल कर कुछ रचनाये सर्च कर सकते हैं । " ----

समीक्षा
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    Ramakant Pandey
    23 ఏప్రిల్ 2017
    सवाल सही है लेकिन कुछ बात गलत हैं। पहली बात कि आप कहती हैं कि स्त्री भ्रूण को इंसान बनाने के लिए कच्चा माल जुटाती हैं लेकिन ये तो अंह मात्र है अन्यथा सृष्टि की अंश प्रकृति का ही प्रकट स्वरूप स्त्री अपने अनंत से आबंधित जीवन के निराकार से साकार होने के कर्मों की संपन्नता का माध्यम है निमित्त है। खुद के नियंत्रण से वो न तो माहवारी सम्पन्न कर सकती है और न ही अपने गर्भ में भ्रूण स्थापित कर सकती है बाकी इंसान बनाने की बात तो बहुत दूर की है क्यूंकि ये कार्य गुरु का होता है और गुरु हालांकि स्त्री भी हो सकती है लेकिन तब जब उसे जीवन का भान हो परमात्मा का ज्ञान हो अपने अस्तित्व का अनुभव हो। दूसरी बात एक स्त्री का दर्द स्त्री ही जान सकती है फिर भी माँ बुआ मौसी दीदी ननद जेठानी हँसती हैं प्रकृति खुद का एक और अंश परिपक्व हो रही जानकर खुश होती है ऐसे ही अपनी भीषण प्रकृति से अनजान उसके दर्द से उसकी प्यास से अनजान जीवन भी खुश होता है उसे एक अछूते रहस्य का रोमांच हंसाता है कभी वो लज़्ज़ा से हँसता है कभी कामातुर भावनाओं से हँसता है। सही है या गलत ये व्यक्ति की अपनी अनुभूति है लेकिन सृष्टि के कार्य इंसान की बोध से परे भी क्रियाशील होते हैं। ये लिखना पुरुष को सही साबित करना या स्त्री को गलत साबित करना नही है बल्कि इस बात को रखने के लिए है कि दोनों एक ही अंश हैं एक प्रकार का ही जीवन उद्देश्य रखते हैं और एक प्रकार से ही ग्रसित हैं दोनों को अपने अपने दर्द को जीतना है। पुरुष कहे उसका दर्द स्त्री समझे या स्त्री सोचे कि पुरुष उसका दर्द समझे तो दर्द तो फलेगा फूलेगा ही। दोनों आज स्त्री पुरुष तो हैं लेकिन गुरु के अभाव में अपनी अपनी मर्यादाओं से नियमित इंसानी स्वरूप खो रहे हैं जो इन सब कड़वे अनुभूतियों का मुख्य जनक है। पहले माँ अपनी बेटी को स्त्रीत्व से परिपूर्ण करती थी जिससे वह अपने पति को सिंचित करती थी उसकी गुरु बनती थी और फिर भी पुरुष को स्त्रियोचित परिधियों से दूर रहने की कला कौशल सिखाती थी अर्थात स्त्री की जैविक अजैविक क्रियाकलापों से अनभिज्ञ रहकर मात्र अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहता था। समस्त मर्यादाओं के रहते भी पहले कुछ उद्दंड स्त्री पुरुष होते थे लेकिन आज मर्यादाओं के हनन से ये अनुपात बहुत बढ़ चुका है। ज्ञान और अज्ञान दोनों का जीवन मे समान महत्व है लेकिन आज लोग एक को ही मान्यता दे रहे और इसलिए कष्ट झेल रहे हैं। जीवन पर अपना अधिकार तो स्थापित करना चाहते हैं लेकिन वास्तव में न खुद का कुछ पता है न जीवन का कुछ पता है। आप लेखक हैं और मैं स्वतंत्र विचारक हूँ इसलिए इतना लिखा। हाँ मेरे शब्द चोट देने वाले हैं लेकिन सबके कल्याण के लिए हैं। हरि ॐ नमः शिवाय
  • author
    Hemal Vyas
    28 జనవరి 2018
    जयंति जैन जी द्वारा नारी की मुक वेदना को वाणी देने का जो प्रयास किया है सचमुच एक सराहनीय कार्य है, नारी कितना दर्द सहती है उसकी आह दूसरे वर्ग के लोगों को भी जानना जरूरी है, ताकि पेड देने वाला लड़का हंसने की जरूरत न करें।
  • author
    जयति जैन "नूतन"
    16 సెప్టెంబరు 2017
    नूतन का मतलब ............. 1. नवीन; नया; अभिनव 2. आधुनिक 3.तुरंत या हाल का; ताज़ा 4. अनोखा; अनूठा;अपूर्व।
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    Ramakant Pandey
    23 ఏప్రిల్ 2017
    सवाल सही है लेकिन कुछ बात गलत हैं। पहली बात कि आप कहती हैं कि स्त्री भ्रूण को इंसान बनाने के लिए कच्चा माल जुटाती हैं लेकिन ये तो अंह मात्र है अन्यथा सृष्टि की अंश प्रकृति का ही प्रकट स्वरूप स्त्री अपने अनंत से आबंधित जीवन के निराकार से साकार होने के कर्मों की संपन्नता का माध्यम है निमित्त है। खुद के नियंत्रण से वो न तो माहवारी सम्पन्न कर सकती है और न ही अपने गर्भ में भ्रूण स्थापित कर सकती है बाकी इंसान बनाने की बात तो बहुत दूर की है क्यूंकि ये कार्य गुरु का होता है और गुरु हालांकि स्त्री भी हो सकती है लेकिन तब जब उसे जीवन का भान हो परमात्मा का ज्ञान हो अपने अस्तित्व का अनुभव हो। दूसरी बात एक स्त्री का दर्द स्त्री ही जान सकती है फिर भी माँ बुआ मौसी दीदी ननद जेठानी हँसती हैं प्रकृति खुद का एक और अंश परिपक्व हो रही जानकर खुश होती है ऐसे ही अपनी भीषण प्रकृति से अनजान उसके दर्द से उसकी प्यास से अनजान जीवन भी खुश होता है उसे एक अछूते रहस्य का रोमांच हंसाता है कभी वो लज़्ज़ा से हँसता है कभी कामातुर भावनाओं से हँसता है। सही है या गलत ये व्यक्ति की अपनी अनुभूति है लेकिन सृष्टि के कार्य इंसान की बोध से परे भी क्रियाशील होते हैं। ये लिखना पुरुष को सही साबित करना या स्त्री को गलत साबित करना नही है बल्कि इस बात को रखने के लिए है कि दोनों एक ही अंश हैं एक प्रकार का ही जीवन उद्देश्य रखते हैं और एक प्रकार से ही ग्रसित हैं दोनों को अपने अपने दर्द को जीतना है। पुरुष कहे उसका दर्द स्त्री समझे या स्त्री सोचे कि पुरुष उसका दर्द समझे तो दर्द तो फलेगा फूलेगा ही। दोनों आज स्त्री पुरुष तो हैं लेकिन गुरु के अभाव में अपनी अपनी मर्यादाओं से नियमित इंसानी स्वरूप खो रहे हैं जो इन सब कड़वे अनुभूतियों का मुख्य जनक है। पहले माँ अपनी बेटी को स्त्रीत्व से परिपूर्ण करती थी जिससे वह अपने पति को सिंचित करती थी उसकी गुरु बनती थी और फिर भी पुरुष को स्त्रियोचित परिधियों से दूर रहने की कला कौशल सिखाती थी अर्थात स्त्री की जैविक अजैविक क्रियाकलापों से अनभिज्ञ रहकर मात्र अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहता था। समस्त मर्यादाओं के रहते भी पहले कुछ उद्दंड स्त्री पुरुष होते थे लेकिन आज मर्यादाओं के हनन से ये अनुपात बहुत बढ़ चुका है। ज्ञान और अज्ञान दोनों का जीवन मे समान महत्व है लेकिन आज लोग एक को ही मान्यता दे रहे और इसलिए कष्ट झेल रहे हैं। जीवन पर अपना अधिकार तो स्थापित करना चाहते हैं लेकिन वास्तव में न खुद का कुछ पता है न जीवन का कुछ पता है। आप लेखक हैं और मैं स्वतंत्र विचारक हूँ इसलिए इतना लिखा। हाँ मेरे शब्द चोट देने वाले हैं लेकिन सबके कल्याण के लिए हैं। हरि ॐ नमः शिवाय
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    Hemal Vyas
    28 జనవరి 2018
    जयंति जैन जी द्वारा नारी की मुक वेदना को वाणी देने का जो प्रयास किया है सचमुच एक सराहनीय कार्य है, नारी कितना दर्द सहती है उसकी आह दूसरे वर्ग के लोगों को भी जानना जरूरी है, ताकि पेड देने वाला लड़का हंसने की जरूरत न करें।
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    जयति जैन "नूतन"
    16 సెప్టెంబరు 2017
    नूतन का मतलब ............. 1. नवीन; नया; अभिनव 2. आधुनिक 3.तुरंत या हाल का; ताज़ा 4. अनोखा; अनूठा;अपूर्व।