क्या कहूं:- बस इतना ही कि एक बेटी की माँ हूँ, तो बस दिल चूर 2 हो जाता है ये सब पढ़कर। कभी 2 तो मन करता है कि क्यों औरतें 9 महीने दर्द सहती हैं ऐसे बेटों को।
ऐसा कानून नही हो सकता कि बेटों को तो फांसी मिले ही पर उन बेटों को फांसी समाज दे, केस न लड़ने वालों, झूठी गवाही देने वालो सबको फांसी हो।
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बहुत ही अच्छा इतना अच्छा की मैं शब्दो मे बता नही सकता, अगर हम कहानियो को सिर्फ कहानी समझकर छोड़ दे तो कोई फ़ायदा नही पढ़ने का हमे कहानियों से जो सिख मिलती है उसे अपने जीवन मे हमे उतारना चाहिए। साला इन जैसे लड़को को तो क्या बताऊँ इतना बुरा बोलने का मन कर रहा है इतना गाली देना का की, ख़ैर आँसू तो नही निकला मगर बहुत ही बेकार feel हो रहा है कि रिंकू नही रही मगर सिर्फ ये कल्पना ही नही है ऐसा तो हमारे देश मे हर रोज हो रहा है,
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Kahani padh kr aankh bhar gyi kuch log sochate hai ki janm se pahle ladkiyon ko mar dena sahi h isse hum unhe aisi taklif se bacha pate hai so ye koi pap nhi mai unlogon se kahti hun bete ko kyun nhi janm se pahle mar dete ki koi darinda paida hi na ho ye samasya janm rok dene se nhi rukegi ye sanskar sahi dene se rukegi aur galat krne wala galat hota h na ki wo jiske sath galat hua to saja bhi samaj ko galati krne wale ko dena chahiye afsos hum Itna padhe likhe ho kr advanced ho kr bhi change nhi la pa rhe samaj me wahi anpadho wali harkat aaj bhi h
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क्या कहूं:- बस इतना ही कि एक बेटी की माँ हूँ, तो बस दिल चूर 2 हो जाता है ये सब पढ़कर। कभी 2 तो मन करता है कि क्यों औरतें 9 महीने दर्द सहती हैं ऐसे बेटों को।
ऐसा कानून नही हो सकता कि बेटों को तो फांसी मिले ही पर उन बेटों को फांसी समाज दे, केस न लड़ने वालों, झूठी गवाही देने वालो सबको फांसी हो।
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बहुत ही अच्छा इतना अच्छा की मैं शब्दो मे बता नही सकता, अगर हम कहानियो को सिर्फ कहानी समझकर छोड़ दे तो कोई फ़ायदा नही पढ़ने का हमे कहानियों से जो सिख मिलती है उसे अपने जीवन मे हमे उतारना चाहिए। साला इन जैसे लड़को को तो क्या बताऊँ इतना बुरा बोलने का मन कर रहा है इतना गाली देना का की, ख़ैर आँसू तो नही निकला मगर बहुत ही बेकार feel हो रहा है कि रिंकू नही रही मगर सिर्फ ये कल्पना ही नही है ऐसा तो हमारे देश मे हर रोज हो रहा है,
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