आ चल कुछ बातें करते हैं, कुछ तुम कहो अपनी, कुछ हम अपनी सुनाते हैं। अजनबीयों से क्युँ बैठें, ये सफर लम्बा है रस्तों को काटने का जरीया बनाते हैं। '*शायद तुम्हारी खामिंयाँ मेरी खुबियाँ बन जाये, ...
मत पुछ इस पंछी से कहाँ जाना है,
पंख पसार उड़ चले हैं, इस उन्मुक्त गगन में,
जहां दिन ढल जाये, बस वहीं ठिकाना है।
कल आज और कल की फिकर क्यों हो हमे,
जब अपनी खिदमत् करता सारा जमाना है ।
सारांश
मत पुछ इस पंछी से कहाँ जाना है,
पंख पसार उड़ चले हैं, इस उन्मुक्त गगन में,
जहां दिन ढल जाये, बस वहीं ठिकाना है।
कल आज और कल की फिकर क्यों हो हमे,
जब अपनी खिदमत् करता सारा जमाना है ।
रिपोर्ट की समस्या
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