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आ चल कुछ बातें करते हैं।

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आ चल कुछ बातें करते हैं, कुछ तुम कहो अपनी, कुछ हम अपनी सुनाते हैं। अजनबीयों से क्युँ बैठें, ये सफर लम्बा है रस्तों को काटने का जरीया बनाते हैं। '*शायद तुम्हारी खामिंयाँ मेरी खुबियाँ बन जाये, ...

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लेखक के बारे में

मत पुछ इस पंछी से कहाँ जाना है, पंख पसार उड़ चले हैं, इस उन्मुक्त गगन में, जहां दिन ढल जाये, बस वहीं ठिकाना है। कल आज और कल की फिकर क्यों हो हमे, जब अपनी खिदमत् करता सारा जमाना है ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    24 नवम्बर 2021
    ✍️🐦🙏🛐😇♥️💝💖🌸💕💓❤️💗💞🍇🤔🎎🤔💘🙏✍️✍️✍️✍️✍️
  • author
    Bala
    18 अगस्त 2019
    बहुत ही खूबसूरत रचना👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
  • author
    madhu singh
    19 मई 2017
    Awesm....sachhi bht hi pyari kavita h ji👌👌👌
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    24 नवम्बर 2021
    ✍️🐦🙏🛐😇♥️💝💖🌸💕💓❤️💗💞🍇🤔🎎🤔💘🙏✍️✍️✍️✍️✍️
  • author
    Bala
    18 अगस्त 2019
    बहुत ही खूबसूरत रचना👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
  • author
    madhu singh
    19 मई 2017
    Awesm....sachhi bht hi pyari kavita h ji👌👌👌