आज सुबह से ही बहुत तेज बरसात हो रही थी । फुहारें जैसे जैसे तेज हो रही थीं, मेरे माथे की षिकन भी वैसे वैसे गहराती जा रही थी ।
आज आॅफिस कैसे पहुंॅचूंगी बस यही एक प्रष्न मन में उमड़ घुमड़ रहा था । छुट्टी ...
अति सुंदर ...
विषय बहुत ही मार्मिक है एवम आज की आधुनिक होती जिंदगी में भी हमारे ह्रदय में जो करुणा छुपी है, जिसके लिए हमे समय ही नहीं मिलता, उससे उजागर करती है
.... आवश्यकताएँ तो बहुत हैं पर उनको पूरा करने की कोशिश में भी जो अपनी इंसानियत को न भूले वही इंसान है ....
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