स्कूल में कहा प्यार कॉलेज में होता है , कॉलेज ने कहा कैरियर के बाद होता है , कैरियर के बाद तो शादी होती है जनाब, प्यार तो असल में बेवक्त होता है, बेवजह होता है और बेइन्हता होता है।
सारांश
स्कूल में कहा प्यार कॉलेज में होता है , कॉलेज ने कहा कैरियर के बाद होता है , कैरियर के बाद तो शादी होती है जनाब, प्यार तो असल में बेवक्त होता है, बेवजह होता है और बेइन्हता होता है।
कभी पूरी ना हो सकने की इच्छा लिए लेखक जी एक गलत मैसेज समाज में पहुंचा रहे हैं। ये जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होते हैं इससे आप खुद को बस चंद पलों की खुशी तो से सकते हैं लेकिन अपने जीवनसाथी को सिवाय धोखे और तकलीफ के कुछ नहीं दे रहे।
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माफ़ कीजियेगा मैं आपके बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। समाज को अपना नजरिया बदल ना पड़ेगा क्योंकि इसमें एक नये रिश्ते की जरूरत एक पुरूष को महसूस हो रही है। लेकिन कितना अच्छा हो कि आपका नायक जैसा अपने लिए महसूस करता हुआ समाज और अपनी पत्नी को दोषी मनाता है। क्या ऐसी मिसाल आप अपनी पत्नी के लिए बने।तो समाज कितना बदला लगे। जितने ध्यान दूसरी औरत की मजबूरी और समझौतों को समझने में लगते हैं उससे आधा समय अपने घर में लगए तो ऐसी कमी उनको महसूस ना हो। पुरूष प्रधान समाज की कहानी
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सच्चाई को उजागर करती रचना, पर यहां एक सवाल वाकई सोचने वाला है कि ऐसा भी क्या हो जाता है लगभग हर रिश्ते में कि करीब आते आते दिलों की दूरियां इतनी बढ़ जाती हैं जबकि वही रिश्ते दूर दूर रहने पर ताजगी से भरपूर रहते हैं। सच्चाई यही है कि जब इंसान अपनी खुशी बाहर ढूंढने लगता है तो जीवन सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ जैसा रह जाता है।
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कभी पूरी ना हो सकने की इच्छा लिए लेखक जी एक गलत मैसेज समाज में पहुंचा रहे हैं। ये जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होते हैं इससे आप खुद को बस चंद पलों की खुशी तो से सकते हैं लेकिन अपने जीवनसाथी को सिवाय धोखे और तकलीफ के कुछ नहीं दे रहे।
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माफ़ कीजियेगा मैं आपके बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। समाज को अपना नजरिया बदल ना पड़ेगा क्योंकि इसमें एक नये रिश्ते की जरूरत एक पुरूष को महसूस हो रही है। लेकिन कितना अच्छा हो कि आपका नायक जैसा अपने लिए महसूस करता हुआ समाज और अपनी पत्नी को दोषी मनाता है। क्या ऐसी मिसाल आप अपनी पत्नी के लिए बने।तो समाज कितना बदला लगे। जितने ध्यान दूसरी औरत की मजबूरी और समझौतों को समझने में लगते हैं उससे आधा समय अपने घर में लगए तो ऐसी कमी उनको महसूस ना हो। पुरूष प्रधान समाज की कहानी
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